नई दिल्ली। 30 दिसंबर 1971 को भारत के प्रमुख वैज्ञानिक विक्रम साराभाई इस दुनिया को छोड़कर चले गये। उन्होंने 86 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे और तकरीबन 40 संस्थान खोले। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना विक्रम साराभाई ने की थी। रूसी स्पुतनिक के लॉन्च के बाद उन्होंने इसरो की स्थापना के बारे में सोचा था। विक्रम साराभाई ऐसे शख्स थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया विक्रम साराभाई को विज्ञान में उनके कार्यों को देखते हुए साल 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में वर्ष 1966 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से उन्हें सम्मानित किया गया।
अन्तर्राष्ट्रीय साजिश के तहत हुई थी मौत
30 दिसम्बर को साथियों संग बैठकें करने के बाद अहम विषयों पर चर्चाएं भी हुई थीं। ऐसे कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे जिससे लगे कि उनकी तबीयत खराब है। अगली सुबह केरल के तटीय शहर कोवलाम के एक होटल रूम में उनका शव मिला। उनकी इस अचानक मौत ने सबको झिंझोड़ कर रख दिया था। बताया जा रहा है कि उनकी मौत को अन्तर्राष्ट्रीय साजिश से जोड़कर देखा जा रहा है।
जासूसी के गलत मामले में फंसाए गए पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक नांबी नारायणन की मानें तो साराभाई अंतरराष्ट्रीय साजिश का शिकार हुए। इसरो के जासूसी मामले में फंसे और फिर बाद में बेदाग साबित हुए एस.नांबी नारायणन की 2017 में मलयाली भाषा में आत्मकथा आई थी जिसका नाम Ormakalude Bhramanapatham है। उस किताब से विक्रम साराभाई की मौत के रहस्य पर फिर से चर्चा गर्माया।