मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की धर्मपत्नी माता सीता की जयंती आज पूरे देश में मनाई जा रही है। मान्यता है कि इस दिन धरती पर माता सीता राजा जनक को मिली थीं। यानि इस दिन को माता सीता के अवतरण के रूप पर मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता की जयंती मनाई जाती है। मान्यता के अनुसार इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
ऐसे पड़ा था सीता नाम
हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था। ग्रंथों में बताया गया है कि जिस भूमि को राजा जनक जोत रहे थे उसी जमीन पर एक कन्या उनको सोने की टोकरी में मिली थी। कन्या के चेहरे का तेज देखकर सभी लोग हैरान थे। राजा जनक ने उस कन्या को गोद लिया। चूंकि यह कन्या हल चलते हुए मिली थी और हल के नोक को सीता कहा जाता है, इसलिए इस कन्या का का नाम सीता रखा गय। गोद लेने के कारण यह राजा जनक की बेटी हुई इस लिए इसे सीता जी को जानकी भी कहा गया।
तिथि और शुभ मुहूर्त
जानकी नवमी तिथि : 21 मई, शुक्रवार
शुभ तिथि शुरू : दोपहर 12:25 बजे, 20 मई
शुभ तिथि समाप्त : 11:10 पूर्वाह्न, 21 मई
सीता नवमी का व्रत रखने से मिलता है सभी तीर्थों का फल
ये है मान्यता
हिंदू धर्म में पवित्रता, समर्पण औऱ त्याग के लिए माता सीता को जाना जाता है। माता सीता को लक्ष्मी देवी का दूसरा रूप माना जाता है। इसलिए माता सीता की कृपा पाने के लिए सीता नवमी के दिन व्रत रखकर श्री सीतायै नमः का जाप करना बेहद शुभ माना गया है। कहा जाता है कि ऐसा करने से पति की उम्र लंबी होती है एवं जानकी स्तोत्र, रामचरित मानस का पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
ऐसे करनी चाहिए पूजा
मान्यता के अनुसार व्रत की शुरूआत सुबह भोर होते ही होती है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर क्रियाओं को पूरा करना चाहिए। इसके बाद स्नान करके पूजा स्थल पर बैठकर भगवान श्रीराम और माता सीता की मूर्ति पर गंगाजल का अभिषेक करना चाहिए। माता सीता को पीले फूल, कपड़े और शृंगार की सामग्री एवं दूध और गुड़ से बने प्रसाद बहुत पसंद है। दिन भर व्रत रखें और शाम को इसी प्रसाद को खाकर व्रत खोलें।