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तीर्थों की संगम स्थली कुरुक्षेत्र में शुरू हुए लक्षचंडी महायज्ञ में पहुंचे वैज्ञानिक, इस चीज का करेंगे शोध

KURUKSHATRA तीर्थों की संगम स्थली कुरुक्षेत्र में शुरू हुए लक्षचंडी महायज्ञ में पहुंचे वैज्ञानिक, इस चीज का करेंगे शोध

तीर्थों की संगम स्थली कुरुक्षेत्र में शुरू हुए लक्षचंडी महायज्ञ में पहुंचे वैज्ञानिक, पर्यावरण पर पड़े असर पर शोध कर रहे हैं अनेक वैज्ञानिक, लक्षचंडी महायज्ञ में 501 कुंडों में 11 दिन तक रोज 2 लाख आहुतियां डलेंगी, पहली बार वैज्ञानिक दृष्टि से महायज्ञ के प्रभावों पर शोध हो रहा है। इसके लिए कुरुक्षेत्र के थीम पार्क में 11 दिवसीय भव्य लक्षचंडी महायज्ञ का हुआ है आयोजन। इसमें 7 देशों के करीब 150 वैज्ञानिक और शोधकर्ता हिस्सा ले रहे हैं। थीम पार्क में मोक्षदायिनी गंगा धाम ट्रस्ट की तरफ से पहली बार भव्य लक्षचंडी महायज्ञ किया गया है। 1 नवंबर तक महायज्ञ चलेगा। इसके लिए ईंटों व सीमेंट से 501 पक्के हवन कुंडों का निर्माण किया गया है।

ट्रस्ट सदस्य के मुताबिक दुर्गा और मां सरस्वती की पूजा के तहत रोजाना 501 हवन कुंडों पर जाप व मंत्रोच्चारण से कम से कम दो लाख आहुतियां डाली जा रही हैं। हवन व पाठ के लिए देशभर से करीब 700 ब्राह्मण आचार्य पहुंचें, जबकि 200 ब्राह्मण पाठ में लगे हुए हैं। रोजाना करीब 10 क्विंटल हवन सामग्री लगेगी। 11 दिवसीय महायज्ञ में करीब 2500 क्विंटल समिधा लगेगी। कम से कम 800 टीन देसी घी लगेगा। रोजाना 250 किलो से अधिक फल प्रसाद आदि के रूप में लगेगा।

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महायज्ञ के जरिए रेतानवेशी संस्थान विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर शोधकार्य कर रहा है। दक्षिण कोरिया में पैरानॉर्मल एक्टिविटी के प्रोफेसर डॉ. राजेश राज ने बताया कि भारतीय संस्कृति के उत्थान, संरक्षण संवर्धन मकसद है। महायज्ञ में फिजियोलॉजी, सोशल साइकोलॉजी और एनवायरमेंट के प्रभावों पर शोध होगा। इसमें महायज्ञ से पहले और बाद में पर्यावरण पर इफेक्ट, समाज में परिवर्तन, हिस्सा लेने वाले लोगों के शरीर, मन और रक्त आदि में प्रभाव, यज्ञ में मंत्रों और प्रयोग होने वाले जल, आसपास की मिट्टी आदि पर प्रभावों को लेकर शोध होगा। शोध में भारत के अलावा जर्मन, जापान, दक्षिण कोरिया, स्विटजरलैंड समेत 7 देशों के करीब 150 वैज्ञानिक व शोधकर्ता हिस्सा लेंगे।

मां मोक्षदायिनी गंगाधाम ट्रस्ट ऋषिकेश-हरिद्वार द्वारा थीम पार्क में 501 कुंडीय लक्षचंडी महायज्ञ आरंभ हुआ। जानकारी देते हुए आयोजन समिति ने बताया कि संरक्षक हरिओम जी महाराज के संरक्षण एवं महामंडलेश्वर डा. प्रेमानंद के मार्गदर्शन में 1 नवंबर तक चलने वाले लक्षचंडी महायज्ञ मुख्य यजमानों द्वारा अरणी मंथन से अग्नि प्रज्जवलित करके किया गया। यज्ञ संरक्षक स्वामी हरिओम महाराज ने इस महायज्ञ की महिमा बताते हुए कहा कि यज्ञ से मनुष्य का जीवन मंगलमय बनता है।संक्रामक रोग नष्ट होते हैं। शत्रु पर विजय प्राप्त की जाती है। प्रत्येक असंभव कार्य भी संभव होते हैं एवं यज्ञ से ही मनुष्य आरोग्य, विद्या, कीर्ति और यश प्राप्त करता है। यज्ञ की महत्ता केवल आध्यात्मिकता ही नहीं बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्त्व भी है।यज्ञ से उत्पन्न होने वाले तत्त्व वायुमंडल में फैल जाते हैं और वायु में विद्यमान असंख्य रोग किटाणु यज्ञ तत्त्वों के सम्पर्क में आते ही सहज रूप से नष्ट हो जाते हैं।

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