चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि भारत वर्ष में सनातन धर्म के नववर्ष के रूप में तो मनाई जाती है ही, साथ ही कहा जाता है कि इस दिन सृष्टि का आरंभ भी हुआ था। माना जाता है कि इस दिन ही बह्मा जी ने भी सृष्टि का आंरभ किया था। नवरात्रि को हमेशा ही माता की अराधना और भक्तिभाव से जोड़कर देखा जाता है। यह सच है कि नवरात्रि का एक बेहद महत्वपूर्ण धार्मिक आधार है। लेकिन क्या आप इस बात से वाकिफ है कि चैत्र नवरात्रि का अपना एक वैज्ञानिक आधार भी है। अगर चैत्र नवरात्रि के नौ दिन व्रत रखा जाए तो इससे माता तो प्रसन्न होती है ही, साथ ही इसके पीछे के वैज्ञानिक आधार भी होता है। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में−
सृष्टि का आरंभ
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि भारत वर्ष में सनातन धर्म के नववर्ष के रूप में तो मनाई जाती है ही, साथ ही कहा जाता है कि इस दिन सृष्टि का आरंभ भी हुआ था। माना जाता है कि इस दिन ही बह्मा जी ने भी सृष्टि का आंरभ किया था। यहां से हरियाली का आगमन होता है। यह हरियाली ही खुशहाली का प्रतीक मानी जाती है।
प्रकृति से जुड़ाव
नवरात्रि के दिन नववर्ष के आगमन पर प्रकृति में भी सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। इस दौरान मौसम न बहुत अधिक गर्म होता है और न ही ठंडा। साथ ही इस समय फसल पकने लग जाती है। इससे जीवन में खुशहाली आती है। जिससे मन प्रसन्न रहता है।
सकारात्मक पक्ष
यूं तो लोग जनवरी को नववर्ष के रूप में मनाते हैं, लेकिन वास्तव में इसमें कई तरह के नकारात्मक पक्ष होते हैं। जैसे इस दिन लोग मदिरा, मांस धूम्रपान व नशे में डूबे रहते हैं, साथ ही अंग्रेजी तिथि के अनुसार मनाया जाने वाला नववर्ष आधी रात को मनाया जाता है, जो भूतों का समय माना जाता है। लेकिन नवरात्रि की शुरूआत से मनाया जाने वाला नववर्ष सकारात्मक तरीके से शुरू किया जाता है। इस दौरान माता की अराधना होती है, लोग पूजा−पाठ करते हैं। साथ ही अपने वितेचारों व आहार को सात्विक रखते हैं, जिससे स्वास्थ्य भी सकारात्मक तरीके से प्रभावित होता है। कहते हैं न कि जैसा खाएंगे अन्न, वैसा होगा मन।
स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक
नवरात्रि के व्रत स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माना जाता है। दरअसल, जब मौसम बदल रहा होता है तो शारीरिक बीमारियां बढ़ने की संभावना काफी बढ़ जाती है। ऐसे में स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि शरीर को भीतर से स्वच्छ बनाया जाए, इसके लिए नवरात्रि व्रत रखना उत्तम माना जाता है। व्रत के दौरान व्यक्ति के मन के भाव अच्छे होते हैं, जिनसे विचारों की शुद्धि होती है। वहीं व्रत के दौरान खानपान का संयम बरतने से शरीर के विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं।
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