नई दिल्ली। मोदी सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अयोध्या मामले की गैर विवादित जमीन को राम जन्मभूमि न्यास को लौटाने की मांग की है। सरकार ने कोर्ट से विवादित जमीन को छोड़कर बाकी जमीन पर जारी यथास्थिति को हटाने की अपील की है। 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर यथास्थिति बरकरार रखने की बात कही। सरकार ने कोर्ट से कहा है कि विवाद सिर्फ 0.313 एकड़ पर है। बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है। लिहाजा इस पर यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत नहीं है।
बता दें कि अयोध्या-बाबरी विवाद के लिए पुनर्गठित की गई 5 सदस्यीय बेंच 29 जनवरी को सुनवाई नहीं कर पाएगी। जस्टिस एसए बोबडे इस दिन उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में बेंच सुनवाई नहीं कर सकेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई होनी है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस रंजन गोगोई ने 25 जनवरी को अयोध्या विवाद की सुनवाई के लिए बेंच का पुनर्गठन किया था। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर को शामिल किया गया। अब बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं। पुनर्गठन में जस्टिस एनवी रमण को शामिल नहीं किया गया।
वहीं इससे पहले 10 जनवरी को 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की थी। लेकिन, कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने पांच जजों की बेंच में जस्टिस यूयू ललित के होने पर सवाल उठाया। इसके बाद जस्टिस ललित खुद ही बेंच से अलग हो गए। हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से लंबित है।