कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 15 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की होने वाली बैठक में शिरकत करने से इनकार कर दिया यही नहीं उन्होंने इसे ‘निरर्थक’भी करार दकया है। उन्होंने तर्क दिया कि एक संस्था के तौर पर राज्य की योजनाओं में मदद के लिये इसके पास कोई वित्तीय शक्तियां नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में भाजपा के 54 कार्यकर्ताओं की हत्या के दावे को ‘गलत’ठहराते हुए उन्होंने 30 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आने से मना कर दिया था।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बनर्जी ने कहा है,यह तथ्य है कि नीति आयोग के पास न तो कोई वित्तीय शक्तियां हैं और न ही राज्य की योजनाओं में मदद के लिये उसके पास शक्ति है। ऐसे में किसी भी प्रकार की वित्तीय शक्तियों से वंचित ऐसी संस्था की बैठक में शामिल होना मेरे लिये निरर्थक है। मुख्यमंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि सहकारी संघवाद को बढ़ाने और संघीय नीति की मजबूती के लिये अंतर-राज्यीय परिषद (आईएससी) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने कहा, पिछले साढ़े चार साल में नीति आयोग से प्राप्त अनुभव ने मेरे पहले के विचार को बल दिया कि हमें संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत गठित अंतरराज्यीय परिषद पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और देश की प्रमुख इकाई के तौर पर आईएससी को अपने कार्य के निष्पादन के लिये इसमें समुचित संशोधन कर इसके कामकाज का दायरा बढ़ाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिलेगा और संघीय नीति को मजबूती मिलेगी। मैंने बार-बार कहा है राष्ट्रीय विकास परिषद, जो काफी हद तक दम तोड़ चुकी है, उसे भी अंतरराज्यीय परिषद की इस विस्तृत संवैधानिक संस्था में मिलाया जा सकता है। देश के विकास से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिये मोदी 15 जून को नीति आयोग की संचालन परिषद की पांचवीं बैठक की अध्यक्षता करने वाले हैं।
हालांकि, बनर्जी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनकी कैबिनेट के अन्य मंत्री उनकी ओर से बैठक में हिस्सा लेंगे या नहीं। इससे पहले भी बनर्जी कई बार नीति निर्माता थिंक-टैंक की बैठकों में शामिल नहीं हुई थीं और योजना आयोग को भंग कर नये ढांचे के निर्माण को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुकी हैं। उन्होंने पिछले साल बैठक में पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधित्व के लिये राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा को भेजा था। अपने पत्र में बनर्जी ने कहा कि किसी भी मुख्यमंत्री से चर्चा किये बगैर नीति आयोग के गठन की एकतरफा घोषणा की गयी। उन्होंने नीति आयोग के अधिकारियों और एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के बयानों का उदाहरण दिया, जिसमें उन्होंने क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के प्रयास के तहत थिंक-टैंक को धन आवंटित करने की शक्ति प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल और भारतीय जनता पार्टी के बीच बढ़ते राजनीतिक विवाद के बीच बनर्जी का नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होने का यह फैसला सामने आया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि उनका फैसला यही दिखाता है कि उन्होंने अब तक अपनी हार नहीं मानी है और हर चीज का राजनीतिकरण करना चाहती हैं। ऐसा कर वह राज्य के विकास को बाधित कर रही हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए। केवल उन्हें ही नीति आयोग से दिक्कत है, दूसरे मुख्यमंत्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं है।
पश्चिम बंगाल के भाजपा उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पूरा देश आगे बढ़ रहा है। कांग्रेस के शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्री भी नीति आयोग की बैठक में आ रहे हैं। केवल ममता बनर्जी इसका विरोध कर रही हैं। यह राष्ट्र के हितों के खिलाफ है। वह देश की प्रगति को बाधित करना चाहती हैं और ‘राष्ट्र विरोधी’ की तरह व्यवहार कर रही हैं। तुरंत पलटवार करते हुए तृणमूल ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस या बनर्जी को राष्ट्रवाद पर भाजपा से सीख लेने की जरूरत नहीं है।
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