नई दिल्ली। साल 2017 में राजनीतिक उटा-पटक के साथ सत्ता परिवर्तन का भी रंग देखने को खूब मिला। बिहार में 20 महीने तक कांग्रेस राजद और जेडीयू के गठबंधन की सरकार थी, लेकिन उठा पटक में सरकार भी बदली और सत्ता की चाभी भी। लेकिन जैसे जैसे सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे उसी के साथ सहयोगियों में खट-पट की आवाजें आने लगी। तल्ख बयानबाजी का सिलसिला शुरू हुआ तो तल्खियों में बदल गया। आखिरकार ये तल्खियां इनती नाराजगियों में बदल गई कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौप कर गठबंधन की सरकार से जेडीयू को अलग कर लिया।
नीतीश के इस्तीफे से आया राजनीति भूचाल
26 जुलाई की शाम नीतीश कुमार ने पार्टी कार्यालय पर जेडीयू के कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक की। बैठक के बाद नीतीश कुमार सीधा राज भवन के लिए निकल गए। जहाँ पर जाकर राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। साथ ही साथ गठबंधन की सरकार से अपने आप को और अपनी पार्टी को अलग कर लिया। इसके बाद से बिहार में राजनीतिक संकट पैदा हो गया । हलचल इस क़दर बढ़ी कि दिल्ली के गलियारों तक बिहार की सियासी पहुँच गई। भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में विधायक दल के नेता सुशील मोदी के साथ समूचे विधायक दल के साथ बातचीत की। इसके साथ ही बिहार की राजनीतिक स्थितियों की समीक्षा के लिए पर्यवेक्षकों को रवाना कर दिया। इसके साथ ही भाजपा ने अपने पुराने सहयोगी रहे जेडीयू और नीतीश कुमार को आखिरकार समर्थन देने का ऐलान कर दिया। भाजपा और जेडीयू के विधायकों की संख्या में विधानसभा में बहुमत के लिए काफ़ी थी। लिहाज़ा एक बार फिर जेडीयू के साथ भाजपा गठबंधन की सरकार बनती नज़र आ रही थीं।
खूब हुई लालू और नीतीश की जूतमपैजार एकाएक जेडीयू का गठबंधन से अलग होना बिहार में एक बड़ा राजनीतिक संकट था। साथ ही साथ भ्रष्टाचार के आरोपों को झेल रही राजद के लिए एक बड़ा सवाल था। क्योंकि राजभवन से निकलते ही नीतीश कुमार ने बिहार में उठे इस राजनीतिक संकट का ठीकरा राजद के सर पर मढ़ दिया था। बैकफुट पर आयी राजद ने मोर्चा संभालते हुए नीतीश कुमार के ऊपर इल्ज़ामों की झड़ी लगा दी। राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव में एक के बाद एक संगीन आरोप नीतीश कुमार के ऊपर लगाए। कभी नीतीश कुमार को ढोंगी कहा तो कभी हत्यारा कहा तो फिर एक बार वापसी का फार्मूला भी सुझाया। लेकिन वक़्त का तक़ाज़ा था दोनों के रास्ते अलग हो चुके थे अब वापसी कर पाना असंभव था।
तेजस्वी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर टूटा महागठबंधन
सरकार में शामिल राजद के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्यों पर पहले आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई और ईडी ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। जिसके बाद सरकार में शामिल राजद के नेता और लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव का भी नाम एक बेनामी सम्पत्ति और आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जोड़ा गया। जिसमें उनके ऊपर सीबीआई ने एक एफआईआर भी दर्ज की अब इस मुद्दे को लेकर नीतीश कुमार की सरकार और नीतीश कुमार पर विपक्ष का हमला शुरू हो गया। विपक्ष तेजस्वी पर कार्रवाई करने का दबाव बना रहा था तो जनता जबाब मांग रही थी। नीतीश कुमार ने तेजस्वी को इस मुद्दे पर जबाब देने के लिए कई बार कहा था। इसके साथ ही घटक दलों से इस मामले में बढ़ रहे गतिरोध को रोकने का भी अनुरोध किया था। इसके बाद नीतीश कुमार ने दबाव को झेवते हुए सरकार से इस्तीफा सौप दिया। इसके साथ ही 20 महीने की महागठबंधन सरकार का अंत हुआ।
भाजपा का समर्थन देना
आखिरकार राजनीति हो या आम जिन्दगी अंत भला तो सब भला 20 महीने की महागठबंधन सरकार से नाता तोड़ नीतीश ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जब इस्तीफा दिया तो पीएम मोदी ने ट्वीट कर बधाई दी थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने भी ट्वीट कर आभार व्यक्त किया था। इसके बाद भाजपा संसदीय दल की बैठक में और भाजपा विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार को समर्थन देने की बात तय हुई। इसी के साथ बिहार में फिर एक नये अध्याय शुरूआत हो गई है। समर्थकों में इस बात को लेकर इतनी खुशी देखी जा रही है कि वो साफ तौर पर कह रहे थे “फिर से एक बार हो… विकास की बयार हो… बिहार में बहार हो… नीतीशे कुमार हो
अजस्र पीयूष