- भारत खबर || नई दिल्ली
आयुर्वेदिक दिनचर्या Aayurvedik Dincharya की शुरुआत कर आप अपने जीवन को बेहद आनंदमय और सुखद बना सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि यदि हम अपने दिन की शुरुआत आयुर्वेद में बताए गए नियमों से करते हैं तो इससे हमारे जीवन को और अधिक लाभ मिलेगा। इसी के साथ हम खुद को बेहद दुरुस्त एवं प्रफुल्लित महसूस करेंगे।
बताते चलें कि हमरी देव भाषा संस्कृत में हमारे द्वारा किए गए दैनिक क्रियाकलापों को ही दिनचर्या कहा जाता है। दिनचर्या दो शब्दों से मिलकर बना है दिन+आचार्य। दिन का मतलब है जिस समय के बीच हम अपने सभी क्रियाकलापों को अंजाम देते हैं, और आचार्य का अर्थ है उन क्रियाकलापों को नियमित रूप से करना। सदा उनके निकट रहना।
आयुर्वेद में ऐसे बहुत से नियम बताए गए हैं, जिन्हें अपनाकर हम बेहद आनंदमय प्रकृति के सानिध्य से जुड़ सकते हैं।
आयुर्वेदिक क्रियाओं का प्रारंभ प्रात: काल के समय पर केंद्रित होता है। क्योंकि वह पूरे दिन को नियमित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा लिखे गए आयुर्वेद ग्रंथों में बताया गया है कि, इन क्रियाओं को अपनाने से हमारे भीतर के प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होते हैं और हमारे मल मूत्र के पदार्थों से शरीर शुद्ध होता है। जब हमारा शरीर शुद्ध होता है तो हमारा मन-मस्तिष्क एकदम संतुलित रहते हैं। इत क्रियाओं को अपनाकर हमारा शरीर एकदम ताजगी महसूस करता है।
आयुर्वेद के सभी नियमों को अपनी दिनचर्या में ढालने के बाद प्रातः काल नियम अनुसार उनका पालन करने से आपका दिन आनंदमय होता है व आपके भीतर एक नई दिव्य ऊर्जा का संचार होता है। एक ऐसी दिव्य ऊर्जा जो आपको अपने कार्य करने के लिए सदैव गतिमान एवं उत्तेजित बनाए रखती है। जब व्यक्ति आयुर्वेद की क्रियाओं को अपनाकर अपने को पहले से बेहतर समझता है तो उसका एकमात्र यही कारण है कि वह मनुष्य प्रकृति के उस सानिध्य से जुड़ जाता है। जिसकी उसे अनंत जीवन तक आवश्यकता होती है।
आइए जानते हैं हम आयुर्वेदिक दिनचर्या Aayurvedik Dincharya की किन-किन क्रियाओं के द्वारा अपने जीवन को सुखद एवं समृद्ध बना सकते हैं।
पहला कार्य : ब्रह्म मुहूर्त | Brahma muhurata
Aayurvedik Dincharya में सबसे पहले आपको सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटे पहले उठना पड़ेगा। आयुर्वेद में सूर्य सूर्योदय होने से पहले वाले समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। ब्रह्म मुहूर्त का अर्थ है भ्रम का समय अथवा शुद्ध चेतना। प्रात:काल की इस बेला नींद को त्याग कर उठना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आयुर्वेद के अनेकों क्रियाओं को अपनाने से पहले यह कार्य बेहद महत्वपूर्ण है।
बताते चलें कि सूर्योदय से पहले पूरे वातावरण में विशाल ऊर्जा की गति का समावेश होता है। सूर्योदय के आधे घंटे पूर्व अनेकों प्रकार की ऊर्जा संपूर्ण वातावरण में भोर करती हैं। वातावरण में नई तरंगों का समावेश होता है। यह समय ब्रह्म ज्ञान ध्यान व स्वाध्याय व अपने जीवन को उत्तेजित बनाने के लिए सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
इस समय संपूर्ण वातावरण में अनेकों दिव्य ऊर्जा ओं का समावेश होता है। एक नई ताजगी के साथ सभी ऊर्जाएँप्रगतिशील आवस्था में विचरण करती हैं। इस समय उठकर ध्यान लगाने से मानसिक कृत्य में सुधार होता है व हमारे रजोगुण और तमोगुण से पैदा होने वाली आक्रमक सोच व सुस्ती से मुक्ति मिलती है।
दूसरा कार्य : सफाई | Clean Up
आयुर्वेदिक दिनचर्या Aayurvedik Dincharya में आपका दूसरा कारण यह है कि आपको ब्रह्म मुहूर्त में उठने के पश्चात सबसे पहले अपनी शारीरिक शुद्धि पर ध्यान देना होगा। यह कार्य अनेकों कार्य में सबसे महत्वपूर्ण है। आपको सादे पानी से कुल्ला कर व अपने शरीर के अंगों को साफ करना होाग। सादे पानी से मुंह धोना आंख धोना हाथ पैरों को धोना ऐसी क्रियाओं पर पहले आपको विशेष ध्यान रखना होगा। इससे आपको आयुर्वेदिक दिनचर्या की आगे की क्रियाओं को करने में किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ेगा।
तीसरा कार्य : श्वास की शक्ति | Power of Breath
आयुर्वेदिक दिनचर्या Aayurvedik Dincharya में आपका दूसरा कार्य यह है कि आपको अपने अपनी नासिका की श्वास शक्ति के प्रभाव को पहचानना होगा। आपकी कौन सी नासिका से श्वास का प्रभाव अधिक है। आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार दाहिनी नासिका सूर्य पित्त और बांई नासिका चंद्र पित्त है।
प्राचीन ऋषि-मुनियों के कथन के अनुसार मानव मस्तिष्क का दाहिना भाग रचनात्मक क्रियाकलापों को नियंत्रित करता है। और मस्तिष्क का बायां भाग तार्किक एवं मौखिक कृतियों को नियंत्रित करता है। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक मानव शरीर की नासिका बाईं ओर से श्वास को भीतर की ओर खींचती है तो इसी के साथ मस्तिष्क का दाहिना भाग रचनात्मक कार्यों को नियंत्रित करता है।
चौथा कार्य : ध्यान और व्यायाम | Meditate and Exercise
आयुर्वेदिक दिनचर्या में आप का चौथा कार्य है कि ध्यान लगाने के लिए आसन ग्रहण करने के पश्चात यह ध्यान रखें कि आपकी दोनों नासिकाओं में श्वास का प्रभाव प्रभा बराबर है या नहीं। अपनी नासिकाओं में श्वास के प्रवाह को बराबर रखने के लिए आपको प्राणायाम की विधि को अपनाना होगा। जिससे आपकी नासिकाओं के श्वास का प्रवाह बराबर होगा।
जब आपकी नासिकाओं के श्वास का प्रावाह बराबर हो जाए तब आप अपनी शारीरिक ऊर्जा को हृदय के चक्र से अपने मस्तिष्क पटल पर तीसरी आंख की ओर केंद्रित करें। और गहरी लंबी सांस लेकर उसे बाहर छोड़ें। तत्पश्चात आप ध्यान की स्थिति में पालथी मारकर बैठे एवं अपने भीतर से आने जाने वाली श्वास के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करें।
इसके बाद आप शारीरिक कसरत की मुद्राओं को जानकर सूर्य नमस्कार आदि क्रियाओं को करें। इन सब क्रियाओं को करने से मन की आक्रमकता समाप्त होती है व हमारी पाचन अग्नि प्रबल होती है। इसी के साथ-साथ हमारी वसा में कमी आती है। हमारा शरीर हल्कापन और परम आनंद की अनुभूति करने लगता है।