नई दिल्ली। आखिरकार पूरे ड्रामे के बाद मायावाती ने अपना इस्तीफा सौप दिया लेकिन ये इस्तीफा भी एक तरह का ड्रामा ही है। वैसे इस खेल की शुरूआत आज मानसून सत्र में राज्यसभा के दौरान प्रश्नकाल से हुई जहां पर मायावती को उपसभापति महोदय द्वारा अपनी बात कहने के लिए 3 मिनट का समय दिया गया था। लेकिन मायावती ने बीते महीने सहारनपुर में भड़की दंगे की आग को एक बार फिर राज्यसभा के जरिए सुलगाने की कोशिश की तो वक्त ही खत्म हो गया। लिहाजा उपसभापति महोदय ने जब मायावती को बोलने से रोकना चाहा तो वो उन पर ही भड़क गई वो अपने तेवर दिखाते हुए साफ कहा कि अगर बोलने नहीं दोगे तो इस्तीफा दे दूंगी।
हांलाकि मायावती ने सदन से बाहर आकर मीडिया से इस पूरे प्रकरण पर अपनी सफाई देते हुए कहा कि सदन में मुझे अपनी बात रखने और कहने का मौका नहीं दिया गया। मैने जैसे ही बोलना शुरू कि सत्ताधारी दल के शोरगुल के चलते मेरी बात पूरी ही नहीं हो पाई कि उपसभापति महोदय ने कहा कि मेरा वक्त पूरा हो गया है। अपने समाज की बात उठाना क्या गलत है। अगर मुझे मेरे समाज की बात नहीं उठाने दी जायेगी तो मैं सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगी। उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश में मौजूदा योगी सरकार में दलितों का दमन किया जा रहा है। इसके साथ ही सहारनपुर दंगे में बसपा को निशाना बनाने की कोशिश हो रही है। माया ने कहा कि जब वो वहां पर पीड़ितों से मिलने जा रही थीं तो प्रशासन ने कोई इंतजाम तक नहीं किया था।
इसके बाद शाम तक खबर आई कि बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपना इस्तीफा भेज दिया है। यानी बहन जी ने जो सुहब कहा था शाम को कर दिखाया लेकिन इसमें भी बहन जी ने पूरी तरह से राजनीति का रंग चढ़ा दिया। क्योंकि सूत्रों और जानकारों की माने तो बहन जी ने आरोपों का पुलिंदा लगाकर और लिखकर बाकायदा एक बड़ा लम्बा-चौड़ा इस्तीफा भेजा है। जो कि कुछ तकनीकि कारणों से नामंजूर हो सकता है। इसके साथ ही मायावती ने ये दांव इसलिए भी खेला है क्योंकि आने वाले समय में केवल एक साल का समय मायावती के पास और राज्यसभा के कार्यकाल का बचा है। इसके अलावा उनके पास इस बार ना विधायकों की बड़ी फौज बची है। ना ही सांसदों की ऐसे में अब दूसरा ही विकल्प देखना उनकी मजबूरी भी है।