बिहार में आने वाले दो महीनों में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। जिसकी वजह से बिहार में सियासी पारा चढ़ गया है। सभी पार्टियां जोड़ तोड़ की राजनीति में जुट गई हैं। इसके साथ ही जनता को लुभाने के लिए राजनैतिक दल एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगा रहे हैं। इस बीच बीजेपी और नीतीश कुमार को हराने के सपने देख रहा महागठबंधन बुरी तरह से टूट गया है। महागठबंधन को सबसे बड़ा झटका जीतन राम मांझी ने दिया है।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया है। हम अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आरोप लगाया है कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जिद्दी हैं और किसी की कोई बात सुनते ही नहीं हैं। ऐसे में उनके साथ रहकर काम करना मुश्किल है। जीतन राम मांझी का महागठबंधन से अलग होना बड़ी क्षति मानी जा रही है। मांझी बिहार में महादलित समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि वोट बैंक के हिसाब से जीतन राम मांझी महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।
बिहार में दलित और महादलित को मिलाकर करीब 16 फीसदी वोटर हैं। इसमें से करीब 5 फीसदी पासवान वोटर रामविलास पासवान की पार्टी के साथ होने का दावा किया जाता है। वहीं जीतन राम मांझी जिस मुसहर समाज से आते हैं उनका वोट प्रतिशत करीब 5.5 फीसदी है। रामविलास पासवान इस वक्त पहले से ही एनडीए में हैं, वहीं मांझी के अलग होने से महागठबंधन को करीब 5 फीसदी और वोटों का सीधा सीधा नुकसान होता दिख रहा है। इसके अलावा महादलित कैटेगरी से आने वाले मांझी के चेहरे पर मिलने वाला वोट भी महागठबंधन से छिटक सकता है।
https://www.bharatkhabar.com/will-get-domicile-certificate-by-post-kashmir/
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हुए इस राजनीतिक उठापटक को लालू खेमे के लिए झटका माना जा रहा है। लालू का पार्टी आरेजेडी की हालत पहले से ही बहुत खराब थी। ऐसे में मांझी का साथ छूटना महागठबंधन के लिए चुनौती बन गया है।