- धार्मिक डेस्क
7 मई, मंगलवार को अक्षय तृतीया के साथ ही भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मोत्सव मनाजा जा रहा है। इस दिन देश में कई कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं और भगवान परशुराम के सम्मान में रैलियों का आयोजन हो रहा है। धर्म ग्रंथों में लिखा है कि परशुराम आज भी इस दुनिया में जीवित हैं। महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, श्री हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्हें कलयुग तक अमर माना जाता है। वे शिव के सबसे बड़े भक्त थे। परशुराम को लेकर कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं।
यूं तो परशुराम भगवान शिव के बड़े भक्त थे, लेकिन एक बार गणेशजी भी उनके गुस्सा से बच नहीं पाए थे। इस पौराणिक कथा के अनुसार, जब परशुराम, भोलेनाथ के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे तो गणेशजी ने रोक दिया। इस बात से गुस्सा होकर उन्होंने अपने फरसे से गणेश का एक दांत तोड़ दिया था। यही कारण है कि गणेशजी को एकदंत कहा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार पिता ऋषि जमदग्नि ने पत्नी रेणुका को पानी भरकर लाने के लिए कहा। पानी लाते समय रेणुका के हाथ से मटका छूट गया और पानी ऋषि पर जा गिरा। इससे उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने बेटे परशुराम को आदेश दिया कि वे मां के सिर धड़ से अलग कर दे। परशुराम पिता की हर बात मानते थे। उन्होंने तुरंत परशु उठाया और मां का सिर धड़ से अलग कर दिया।
बेटे ने आज्ञा का तत्काल पालन किया तो ऋषि खुश हो गए। उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। इस पर परशुराम ने पिता से अपनी माता को फिर से जीवित करने का वरदान मांगा। साथ ही कहा कि मां जब पुनः जीवित हो जाए तो उन्हें यह घटनाक्रम याद न रहे। ऋषि जमदग्नि ने अपनी दिव्य शक्तियों से पत्नी रेणुका को फिर से जीवित कर दिया।
परशुराम भगवान अकेले ऐसे हैं जो रामायण और महाभारत, दोनों के समय मौजूद थे। द्वापर में उन्होंने कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया और इससे पहले उन्होंने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। द्वापर में उन्होंने ही असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी।