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आज करें मंगला गौरी का व्रत, सावन में इसका अलग है महत्व, मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी

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आज मंगलवार है और सावन का महीना चल रहा है। इस दिन कुंवारी लड़की मंगला गौरी की पूजा कर उनसे अच्छे वर की कामना करती है, तो माता उस कामना को जरूर पूरा करती हैं।
सावन माह में अलग है इसका महत्व
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम पांच साल तक रखा जाता है और हर साल सावन में 4 या 5 मंगलवार के व्रत होते हैं। जिन्हें काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें कुंवारी लड़कियां माता से जो भी मांगती है उनकी इच्छा जरूर पूरी होती है।
आज है मंगला गौरी का व्रत 
आज मंगला गौरी व्रत है। इस दिन सुबह उठकर लोग भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं। प्राचीन काल से ही ऐसा माना गया है कि इस व्रत को रखने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही दीर्घायु मिलती है। यदि नव विवाहित स्त्री इस व्रत को रखती हैं तो उनका पूरा वैवाहिक जीवन सुखपूर्ण रहता है।
मिलता है मनचाहा जीवनसाथी 
मंगला गौरी का व्रत करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। सावन के महीने में ही माता पार्वती की तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए थे और उनसे विवाह के लिए राजी हो गए थे। कहते हैं कि अगर कोई कुंवारी लड़की इस दिन मां पार्वती की पूजा कर उनसे सुयोग्य वर की कामना करती है, तो माता उस कामना को जरूर पूरा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम पांच साल तक रखा जाता है। हर साल सावन में 4 या 5 मंगलवार के व्रत होते हैं।  आखिरी व्रत वाले दिन उद्यापन किया जाता है।
ये है मंगला गौरी की व्रत कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे। ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी। इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की।
नवविवाहित महिलाएं भी करती हैं पूजा
इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं तथा अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
प्रसाद बांटने की विधी
इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है। इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है।
गौरी की प्रतिमा को नदी में किया जाता है विसर्जित 
व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है। अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें । इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है।

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