बहकावे में आकर कराए लोकसभा चुनाव
इंदिरा गांधी के समर्थकों द्वारा उन्हें यह विश्वास दिलाना की वह जनता की लोकप्रिय बन गई है और अलग चुनाव कराए जाए तो उन्हें जीत अवश्य मिलेगी। ऐसे में इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनवा का आयोजन साल 1977, 18 जनवरी को किया। ऐसे में राजनीतिक चुनाव आने के कारण मीडिया को स्वतंत्र कर दिया गया। जिसके बाद मीडिया को चुनाव प्रचार की आजादी दे दी गई। वही लोकसभा चुनाव के कारण सभी राजनीतिक कैदियों को रिहाई दे दी गई। लेकिन बहकावे में आने के कारण इंदिरा गांधी ने स्तिथि को समझा नहीं। और राजनीतिक कैदियों के जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने एक एक करके जनता को जेल में किए गए उनके साथ व्यवहार के बारे में जानकारी दे दी। सभी लोगों ने उनके साथ किए गए अत्याचारों के बारे में जाना। जिसके बाद विपक्ष भी अपनी पूरी ताकत के साथ इंदिरा गांधी से सामने पेश हो गया। ऐसे में विपक्षियों ने एकजुट होकर इंदिरा पर वार करने के की ठान ली। जिसके बाद कांग्रेस-ओ, जनसंघ, लोकदल तथा समाजवादी पार्टी ने मिलकर एक पार्टी के गठन की तैयारी की जिसका नाम जनता पार्टी रखा गया। विपक्षियों का एकजुट होने के बाद बची हुई पार्टियों का भी समर्तन जनता पार्टी को मिलने लग गया।
सभी विपक्षियों का एकत्रिक होने इंदिरा के लिए खतरे का संकेत दे रहा था। दलित समुदाय पर गहरा प्रभाव डालने वाले और इंदिरा गांधी के सहयोगी जगजीवन राम विपक्षियों से मिले। लेकिन इनके साथ भी कुछ गलत हो गया था। जब जगजीवन राम ने अपने आप को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था तो इंदिरा गांधी ने उन्हें नजरबंद करा दिया था। बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला देने पर जगजीवन राम ने उस वक्त अति महत्वकांक्षा दिखाई थी। वही इंदिरा गांधी का जगजीवन राम को नजरबंद कराने के बाद वह इस बात को अच्छी तरह से समझ गए थे कि अब कांग्रेस में उनका कोई भविष्य नहीं बचा है। चुनाव 16 मार्च 1977 में चुनाव खत्म हो गया लेकिन इससे पहले धीरे-धीरे कर इंदिरा गांधी अकेला महसूस करने लगी तो उनके साथ छोड़ने वाले लोगों में दो नाम नंदिनी सत्पथी और हेमवती नंदन बहुगुणा का भी जुड़ गया। यह दोनों भी इंदिरा गांधी का साथ छोड़ कर चले गए थे।