लखनऊ। राजनीति के खेल में कब क्या हो जाए किसी को भी नहीं पता। आपका कौन सा दांव सही पड़ेगा और कौन सा उल्टा यह तो कोई भी नहीं जानता। एक ऐसा ही हादसा हुआ है समाजवादी पार्टी के राष्टृीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ।
सपा मुखिया अंबेडकर जयंती को अनोखे अंदाज में मनाकर दलितों को रिझाने का प्रयास कर रहे थे। इसकी बकायदा उन्होंने घोषणा भी कर दी थी लेकिन दलित समुदाय के लोग खुश होने के बजाय उल्टा उन पर ही भड़क उठे। इतना ही नहीं उन्हें दलित विरोधी मानसिकता वाला भी बताने लगे।
ये है पूरा मामला
मामला पूरा ये है कि 14 April को संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती होती है। इस बार अंबेडकर जयंती को अखिलेश यादव ने दलित दिवाली के रूप में मनाने का एलान किया है। बकायदा इसकी घोषणा भी की थी। लेकिन, सोशल मीडिया पर उनके एलान के बाद दलित समुदाय के युवा भड़क उठे।
क्या है नाराजगी
दलित समुदाय के लोगों ने नाराजगी जताते हुए कहा कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर वैश्विक छवि वाले व्यक्तित्व हैं। लेकिन, अखिलेश यादव दलित दिवाली मनाने का एलान कर उन्हें एक विशेष वर्ग तक ही सिमित कर रहे हैं।
क्या कहते हैं युवा
शोधार्थी और सामाजिक मुद़दों पर मुखरता से लिखने बोलने वाले डॉ. अजय कुमार कहते हैं कि भैया जी बाबा साहेब अंतराष्ट्रीय युगपुरुष हैं इसलिए उन्हें किसी समाज तक सीमित न करें! सुना है कि आपकी पार्टी में कार्य करने वालों को #जाति के आधार पर उनके प्रकोष्ठ में रखा जाता है ? अगर ऐसा है तो मैं भी उस जाति वाले प्रकोष्ठ में शामिल होना चाहता हूँ! इस मुद्दे को लेकर अजय ने और भी कई पोस्ट लिखी हैं जिसमें वे अखिलेश यादव पर कटाक्ष करते नजर आ रहे हैं।
शोधार्थी सुधाकर पुष्कर लिखते हैं कि सुना है आप पढ़े लिखे हैं आपके मुँह से यह अच्छा नहीं लगता, आपसे ये उम्मीद नहीं थी, आपको माफी मांगनी चाहिए, यह अपमान है संविधान निर्माता का।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विवि के शोधार्थी बसंत कनौजिया कहते हैं कि पूरी दुनिया #World_Knowledge_Day और #Equality_Day मनाती है। लेकिन भारत के समाजवादी विचारधारा के लोग #दलित_दिवाली मना रहे हैं। बाबासाहेब के विचारों और उनके ज्ञान को विश्व के दूसरे देश ही समझ पाए हैं। लेकिन भारत के लोग नहीं समझ पा रहे हैं।
बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपना सारा जीवन जाति और हिंदू धर्म के खिलाफ संघर्ष किया। बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी के जन्मदिन को #दलितदिवाली कहकर यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाबासाहेब का अपमान किया है। लोहिया और तथाकथित समाजवादी नेता लोग हमेशा जाति और हिंदू धर्म की तर्ज पर चलते हैं। इसमें अनुसूचित जाति के लोग भी पीछे नहीं है।
नवनीत कनौजिया लिखते हैं कि अखिलेश यादव जी के इस ट्वीट को जरा ध्यान से पढ़ना चाहिए ये ट्विट बहुत कुछ साबित करता हैं कि वो किस मानसिक स्तर के व्यक्ति हैं और सामाजिक समझ कितनी रखते हैं। इसका भी अंदाजा लगा सकते हैं। इसमें इनकी गलती बिल्कुल नहीं है। जब मुँह में सोने का चम्मच लेकर ही पैदा हुए हैं तो क्या कह सकते हैं। इनके बस से बाहर है दलित दीवाली और अम्बेडकर को समझना।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश कृष्ण मोहन कहते हैं कि यह सपा का वैचारिक दिवालियापन है। भारत रत्न, वैश्विक नेता को दलित नेता बता रहे हैं। जिसने अखिलेश यादव को यह खुराफाती सलाह दी वह अपने मकसद में कामयाब रहा! कैलीफोर्निया बाबा साहब के जन्मदिन को जहां समता दिवस के रूप में मना रहा है, वहीं समाजवादी पार्टी दलित दीवाली के रूप में मनाने की बात कर रही है। यह भारत रत्न बाबा साहेब के कद को बड़ा करना नहीं, बल्कि उनके महत्व से अनजान होना है। जिसे यह पोस्ट खराब लगे, वह माफ करें।
वहीं समाजवादी विचारक चंद्र भूषण सिंह यादव अखिलेश का समर्थन करते हुए लिखते हैं कि दलित का मतलब केवल एससी नहीं होता, बल्कि सारी वंचित-शोषित-दमित जातियां दलित हैं। तभी तो अखिलेश यादव जी का आवास धुला गया था जिसे वे रियलाइज कर रहे हैं। इसकी तारीफ होनी चाहिए लेकिन इस पर बेवजह टिप्पणी को क्या कहा जाए?