नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को देश में मुसलमानों में ‘तीन तलाक’, ‘निकाल हलाल’ व ‘बहुविवाह’ जैसी प्रथाओं का विरोध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि इन्हें इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता। सरकार ने शुक्रवार को अपने हलफनामे में तर्क दिया, “तथ्य तो यह है कि जिन प्रथाओं पर सवाल उठ रहे हैं, उसपर मुस्लिम राष्ट्रों में व्यापक सुधार किए गए हैं, जिससे स्थापित होता है कि इसे इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता।”
इस्लामिक राष्ट्रों में पर्सनल लॉ में काफी पहले किए गए बदलाव का संदर्भ देते हुए सरकार ने ईरान, इंडोनेशिया, तुर्की, ट्यूनीशिया, मोरक्को, अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान में विवाह के नियमों में किए गए बदलाव का हवाला दिया। सर्वोच्च न्यायालय के पांच सितंबर के आदेश का जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा, “यह उल्लेखनीय है, यहां तक कि धर्मशासित राष्ट्रों ने भी इस क्षेत्र में कानून में बदलाव किए हैं और इसीलिए भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में संविधान के अंतर्गत महिलाओं को दिए गए अधिकारों से इनकार करने का कोई कारण ही नहीं बनता।”
सर्वोच्च न्यायालय ने पांच सितंबर को अपने आदेश में केंद्र सरकार को तीन तलाक सहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकार पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। न्यायमूर्ति अनिल आर.दवे तथा न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने 16 अक्टूबर, 2015 के अपने आदेश में महान्यायवादी मुकुल रोहतगी तथा राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण को नोटिस जारी करते हुए मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई के लिए जनहित याचिका की अलग से एक सूची बनाने का निर्देश दिया था।
केंद्र सरकार ने कहा कि तीन तलाक के सवाल पर ‘गैर-भेदभाव, गरिमा व समानता’ के सिद्धांत के तहत विचार करने की जरूरत है।