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भाईयों… अगर गठबंधन टूट गया तो क्या होगा? जानें मुख्य बातें जो डाल सकता है खलल

akhilesh mayawati ajit singh भाईयों... अगर गठबंधन टूट गया तो क्या होगा? जानें मुख्य बातें जो डाल सकता है खलल
  • मनोज यादव

उत्तर प्रदेश में पांचवें चरण के चुनाव की समाप्ति के बाद कुल 53 सीटों पर चुनाव संपन्न हो जाएंगे। पांचवें चरण की कुल 14 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, जिनमें कई हाई प्रोफाइल सीटें भी हैं। लखनऊ लोकसभा सीट से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह चुनाव लड़ रहे हैं, तो अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति इरानी मैदान में हैं। वहीं, रायबरेली में भी मतदान हो रहा है, जहां कांग्रेस अध्यक्ष की मां सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही हैं।
लेकिन इस बार के चुनाव में सपा-बसपा और रालोद के एक साथ आ जाने से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण काफी बदल गए हैं। यहां पर इस बार किसी की लहर जैसी कोई बात नहीं देखी जा रही है। हां इतना जरूर है कि गठबंधन के पक्ष में लोग जरूर लामबंद हुए हैं। सपा-बसपा के कैडर के एक साथ आने से समाज के अंतिम व्यक्ति तक यह संदेश जा रहा है कि बहन जी और अखिलेश यादव एक साथ हैं और अखिलेश यादव ने तो यहां तक कह दिया है कि भाजपा को हराने के लिए वो दो कदम पीछे भी हटने को तैयार हैं। मतलब बिल्कुल साफ है कि अगर भारतीय जनता पार्टी को बहुमत हासिल नहीं होता है और थर्ड फ्रंट जैसी कोई बात सामने आती है, तो शायद अखिलेश यादव पहले व्यक्ति होंगे जो बहन जी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाएंगे।
अब भारतीय जनता पार्टी की तरफ से जो बयानबाजी की जा रही है कि सपा-बसपा का गठबंधन 23 मई को चुनाव नतीजों के बाद टूट जाएगा। जिस तरह से सपा और कांग्रेस का गठबंधन नतीजों के बाद खुद ही खत्म हो गया था। अब भाजपा की इन बातों में कितना दम है। इस पर भी चर्चा करना जरूरी है। यह संभव है कि अगर किसी पार्टी को बहुमत हासिल न हो तो भारतीय जनता पार्टी खुद सरकार न बनाकर छोटी-छोटी पार्टियों को एक करके बाहर से समर्थन देकर सरकार बना दे और चाबी अपने पास रखे। इसलिए भाजपा नेताओं की बातों में सच्चाई भी हो सकती है। लेकिन अखिलेश यादव और मायावती ने जिस तरह से अपने सभी मतभेदों को भुलाकर गठबंधन किया है। उससे इस बात की गुंजाइश बहुत कम लगती है कि ऐसा संभव हो पाएगा। लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए। उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। सपा-बसपा गठबंधन भी लोगों के समझ से परे था। तमाम लोग यह चाह रहे थे कि ऐसा न हो और समय-समय पर गेस्ट हाउस कांड की याद को ताजा किया जाता था। लेकिन मायावती ने अपने वक्तव्य में कहा कि वह एक दुर्घटना थी, जिसे नहीं होना चाहिए था। लेकिन देश हित उससे कहीं बड़ा है। इसलिए गठबंधन जरूरी है।
उसके बाद से जो भी फैसले हुए दोनों ही दलों के नेताओं ने मिलकर किया और आज तक वह बिल्कुल सही तरीके से चलता आ रहा है। दोनों ही दलों का शीर्ष नेतृत्व एक साथ मिलकर किसी काम को करते हैं और एक साथ रैलियां कर रहे हैं। मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के साथ मायावती ने मंच साझा करके यह संदेश दे दिया कि गठबंधन धर्म को वो बिल्कुल समझती हैं और गंभीरता पूर्वक निभाना भी जानती हैं। इसके अलावा कन्नौज की रैली में डिंपल यादव का मायावती का पैर छूने से समाज में बहुत बड़ा संदेश गया और मायावती ने जिस तरह से डिंपल यादव को आशीर्वाद दिया उससे लग रहा था कि उनके दिल में इन लोगों के लिए खास जगह बन गई है।
अब भाजपा नेताओं का यह कहना कि यह गठबंधन बहुत जल्द टूट जाएगा, तो थोड़ा अजीब सा लगता है या यह कह सकते हैं कि निराशाजनक लगता है। अखिलेश यादव कहते हैं कि गठबंधन धर्म निभाने के लिए हम हमेशा दो कदम पीछे चलने के लिए तैयार हैं। अगर किसी वजह से इनका गठबंधन टूट जाता है, तो यह बहुत बड़ी राजनीतिक भूल साबित होगी।
(डिस्क्लेमर : मनोज यादव अतिथि लेखक हैं और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।) यह आर्टिकल times now hindi से लिया गया है

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