नई दिल्ली। भारत के मशहूर आर्किटेक्ट बालकृष्ण दोशी को नोबेल पुरस्कार के बराबर माने जाने वाले प्रतिष्ठित प्रित्जकर पुरस्कार से स्मानित किया जाएगा। ये पुरस्कार आर्किटेक्चर क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने वालों को दिया जाता है। पूणे में जन्मे 90 वर्षिय दोशी इस सम्मान को पाने वाले पहले भारतीय हैं। इससे पहले इस पुरस्कार से दुनिया के मशहूर आर्किटेक्ट जाहा हदीद, फैंक गहरी, आईएम पेई और शिगेरू बान सम्मानित हो चुके हैं। प्रित्जकर की ज्यूरी का कहना है कि सालों से बालकृष्णा दोशी ने ऐसा आर्किटेक्ट बनाया है, जो गंभीर, गैर-आकर्षक और ट्रेंड्स को फॉलो नहीं करता है और उनके अंदर अपने देश और लोगों के जीवन में योगदान देने की इच्छा होने के साथ-साथ इसे निभाने की जिम्मेदारी भी साफतौर पर दिखाता है।
उच्च गुणवत्ता, प्रामाणिक वास्तुकला के जरिए उन्होंने सार्वजनिक प्रशासन और उपयोगिताओं, शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थान और रिहायशी और प्राइवेट क्लांइट्स और दूसरी इमारतें बनाई हैं। मुंबई के प्रतिष्ठित जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर से पढ़ाई करने वाले दोशी ने वरिष्ठ आर्किटेक्ट ले कॉर्ब्यूसर के साथ पेरिस में साल 1950 में काम किया था। उसके बाद वह भारत के प्रोजेक्ट्स का संचालन करने के लिए वापस देश लौट आए।
उन्होंने साल 1955 में अपने स्टूडियो वास्तु-शिल्प की स्थापना की और लुईस काह्न और अनंत राजे के साथ मिलकर अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के कैंपस को डिजायन किया। इसके बाद उन्होंने आईआईएम बंगलूरू और लखलनऊ, द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, टैगोर मेमोरियल हॉल, अहमदाबाद का द इंस्टिट्यूट ऑफ इंडोलॉजी के अलावा भारत भर में कई कैंपस सहित इमारतों को डिजायन किया है। जिसमें कुछ कम लागत वाली परियोजनाए भी शामिल हैं। पुरस्कार लेने के लिए दोशी मई में टोरोंटो जाएंगे और वहां वह एक लेक्चर भी देंगे।