सूबे के मुखिया स्वास्थ विभाग के लिए जितने गंभीर हैं स्वास्थ सेवाएं उनसे उतना ही दूर होती नजर आ रही है। आलम तो यह है कि सरकारी अस्पतालों में बुखार तक की दवा नहीं है। सरकारी डॉक्टर बाहरी दवा लिखने को मजबूर हैं। ताजा मामला फतेहपुर जिले के ट्रामा सेंटर में आने वालो मरीजों का है जहां खांसी बुखार जैसी बीमारियों तक की दवा नहीं हैं।
फतेहपुर जिले के डिस्ट्रिक अस्पताल में आने वाले मरीजों को बुखार तक की दवा नहीं मिल रही हैं। जिले में लगभग 25 लाख की आबादी हैं और यहां एनएच 2 और गंगा यमुना कटरी से मरीज आते हैं लेकिन अस्पताल में दवा ना होने के चलते गरीब मरीजों को भटकना पड़ता है। वहीं इलाज कराने आए तीमारदारों की माने तो डॉक्टरों द्वारा बाहरी दवाएं लिखी जाती हैं और जब बाहरी दवा लिखे जाने का विरोध करो तो अस्पताल में दवा ना होने की बात कही जाती है। सरकारी डॉक्टर से मीडिया ने दवाओं के बारे में जानकारी लेनी चाही तब मीडिया ने सवाल उठाया की बाहर की दवाए लिख रहे हैं और कमीशन खोरी पर डॉक्टर अपना रोब दिखाने लगे।
वही जब डिस्टिक हॉस्पिटल के चीफ फार्मेसिस्ट से दवाओं की किल्लत के बारे में बात की गई तो उनका कहना था की अस्पताल में बहुत सी दवाएं खत्म हैं जो दवाएं हैं भी उन्हें डॉक्टरों द्वारा अलग से पर्चा लिखे जाने में दिया जाता है। इस मामले में मुख्य चिकित्सा अधिकारी से जिले में खत्म हुई दवाओं के बारे में पूंछा गया तो उनका कहना था की जीएसटी लगने के बाद से दवाओं की किल्लत हुई है, लेकिन अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में दवाएं हैं अगर डॉक्टरों द्वारा बाहरी दवाएं लिखी जा रही है तो जांच करा कार्रवाई की जाएगी।