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बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ के नारे में कितनी सच्चाई, गोरखपुर में जनवरी 2021 से लेकर अब तक 257 बेटियां गायब

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बेटियों की लेकर अब तक आप लोगों ने कई बातें सुनी होगी। बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ लेकिन क्या आप लोगों ने सोचा है। रहेंगी बेटी तभी तो पढ़ेंगी बेटी, जी हां हम बात कर रहे है गोरखपुर मंडल की जहां जनवरी 2021 से लेकर अब तक तकरीबन 257 बेटियां गायब हो चुकी है। जिनमें से पुलिस ने बड़ी जद्दो जहद के साथ किसी तरह 169 बेटियो को तो बरामद कर लिया है। लेकिन अभी भी तकरीबन 100 बेटियां गायब है। जो पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। अब ऐसे में पुलिस के कार्यशैली पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा होता दिख है।

बता दें कि गोरखपुर मंडल के चारो जिलों से अब तक एक साल के अंदर 257 लड़कियां गायब हो चुकी है। जिसमें गोरखपुर से अब तक 71 बेटियां गायब हुई। जिसमे पुलिस ने 17 बेटियों को बरामद किया गया। जब कि अभी भी 54 बेटियां गायब है,तो वहीं देवरिया जिले से 146 बेटियां गायब हुई जिसमे131 बेटियों को पुलिस ने बरामद किया अभी भी 25 बेटियां गायब है,कुशीनगर जीले से 15 बेटियां गयाब हुयी जिसमे पुलिस ने अभी तक 7 बेटियों को बरामद किया अभी भी 8 बेटियां गायब,और महराजगंज जिले से 25 बेटियां गायब हुयी जिसमे पुलिस ने 24 बेटियो को बरामद किया अभी भी 1 गायब है।

अब ऐसे में पुलिस ने काफी मस्कत के बाद गोरखपुर मंडल में किसी तरह से 169 लड़कियों को तो बरामद कर लिया है लेकिन अभी भी तकरीबन 100 लड़कियों को किसी रहनुमा का इंतजार है जो आकर उनकी जान बचा ले और उन्हें उनके परिवार से मिला दे।खैर जिस तरह से इतने भारी तादात में बेटियां गायब है और पुलिस उनके पहुच से दूर है ये निचित तौर पर पुलिस के कार्यशैली पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है।

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आप को बता दें कि हाल ही में 8 जुलाई को गोरखपुर के बेलीपार की एक महिला बेटी के साथ दिल्ली से गोरखपुर अपने गाँव आयी थी। जो दिल्ली में रहती है गोरखपुर आने के बाद उनकी बेटी लापता हो गई। उन्होंने केस दर्ज कराया और पुलिस जांच शुरू की लेकिन बच्ची के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई। इसके बाद मां ने दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। जिसपर पुलिस की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की और गोरखपुर पुलिस को फटकार लगाया।जिसके बाद गोरखपुर एडीजी अखिल कुमार सख्त हुए और जिले के पुलिस कप्तानों को अलर्ट करते हए अलग से बजट का प्रबंध करने का आदेश दिया जिससे दूसरे प्रदेश में दबिश के लिए जाने वाली टीम को किसी प्रकार का दिक्कत न हो साथ ही बजट के प्रावधान के लिए मुख्यालय को भी पत्र लिखने के तैयारी में लगे।

जानकारों की माने तो यूपी पुलिस को लड़कियों की बरामदगी में अपनी जेब ढीली करनी पड़ जाती है ऐसे में आलम यह है की कुछ मामले में पुलिस को उनके ठिकानों की जानकारी तो होती है लेकिन उन्हें पकड़कर ले आने में आने वाले खर्च से डर कर पुलिसवाले सिर्फ समय पास कर रहे हैं। जिस मामले में वादी अपने स्तर से पुलिस की मदद (खर्च) को तैयार है उसमें लड़कियां जल्द बरामद कर ली जाती हैं।

वही कहा जाता है कि लड़कियों की लोकेशन यूपी से बाहर यानी दिल्ली, मुम्बई, कोलकता, बंगलुरु, बिहार सहित अन्य प्रदेश में मिल रही है।लेकिन इन्हें बरामद करने में होने वाले खर्च का इंतजाम न होने से पुलिस वहां जाने से बच रही है। ऐसे में लड़कियों को बरामद करने में और उनके अपहर्ताओं को पकड़ने में विवेचक के अलावा एक सिपाही और एक महिला सिपाही की टीम बनती है कभी-कभी अपहर्ता की संख्या एक से ज्यादा हुई तो सिपाहियों की संख्या बढ़ानी पड़ती है।

अब ऐसे में दूसरे प्रदेश में दबिश में जाने वाली टीम को अगर जेब से हुए खर्च का पैसा चाहिए तो उन्हें ट्रेन या फिर बस से टिकट लेकर जाना होगा और उसी से फिर वापस आकर पूरे खर्च का बिल बाउचर के साथ हिसाब देना होगा। अब पुलिसकर्मी हर जगह बस या ट्रेन से व्यवहारिक रूप से जा नहीं सकते हैं ऐसे में उनके जेब से काफी पैसा खर्च होता है जो कि उन्हें कभी मिलता नहीं है।जो प्रान्त से बाहर गयी लड़कियों को बरामद न कर पाने का पुलिस के लिए सबसे बड़ा कारण है।

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