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भक्ति से भगवान का मित्र बनना भी सम्भव: मुक्तिनाथानन्द

WhatsApp Image 2021 07 13 at 6.07.16 PM भक्ति से भगवान का मित्र बनना भी सम्भव: मुक्तिनाथानन्द

लखनऊ। मंगलवार की प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने बताया कि कोई भी भक्त वह जिस भी जाति का हो, वह अगर भक्ति से भगवान को मित्र बनाना चाहेंगे तो भगवान कृपा करके उसकी मित्रता भी ग्रहण करते हैं।

भक्त निषाद राज, गुहल चंडाल का दृष्टांत उल्लेख करते हुए स्वामी ने कहा कि रामायण में निषादराज गुह केवट वंश का था तथा मल्लाह का काम करता था लेकिन बचपन से ही उन्हें रामचंद्र को मित्र बनाने की व्याकुलता थी।

जब उनके पिताजी ने उनको सिर्फ पाँच वर्ष की आयु में रामचंद्र जी से मिलने के लिए अयोध्या भेजा तब अयोध्या में पहुँचने के बाद वह जब सरयू नदी में स्नान कर रहे थे उसी समय स्वयं रामलला उनके पास पहुंचकर उनके द्वारा भेंट किये गये वस्त्र ग्रहण किये एवं उनका सादर स्वागत करते हुए अपने पिताजी दशरथ के पास ले गये।

कालांतर में जब रामचंद्र जी का चौदह वर्ष का वनवास हुआ उस समय कौशल राज के सीमांत में पहुंचने के बाद वह गुहल चंडाल का आतिथ्य स्वीकार किया एवं उनके बचपन की मित्रता के कारण दोनों ही एक साथ धनुर्विद्या की शिक्षा ग्रहण करते थे जिसे याद करते हुए उनको गले में मिला लिया।

उन्होंने कहा कि रामचंद्र जी ने वचन दिया था कि वनवास के उपरांत वह फिर उनके पास आएंगे एवं कृपा करेंगे। रामचंद्र जी ने अपने राज्याभिषेक मे गुहल चंडाल को बुलाया एवं सबके सामने उनका सम्मान  किया और मित्रता का स्मारक रुप से उनको रामराज्य का प्रथम नागरिक बनाया।

आगे जब अश्वमेघ यज्ञ हुआ उस समय भी निषादराज को बहुत सम्मान दिया अर्थात जो भी भगवान की भक्ति करेगा और जिस भाव से भगवान को अपनाना चाहेगा, भगवान वह भाव ग्रहण करते हुए भक्तों पर कृपा करते हैं।

इस हेतु उनका नाम है ’भाव ग्राही जनार्दन’ वह भावग्रहणकारी, परम् करूणामयी ईश्वर हैं जो हम पर कृपा करने के लिए सदा व्याकुल रहते हैं अगर हम इस तरह एक भाव ग्रहण करते हुए भगवान को प्रार्थना करें तो हमारा जीवन भी सार्थक ए्वँ आनन्दपूर्ण हो जाएगा।

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