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आषाढ़ महीने की सप्तमी पर करें सूर्य देवता की पूजा, नहीं लगेंगी बीमारियां, दुश्मनों पर मिलेगी जीत

SunRisingCloseUpII590300 आषाढ़ महीने की सप्तमी पर करें सूर्य देवता की पूजा, नहीं लगेंगी बीमारियां, दुश्मनों पर मिलेगी जीत

भारत में सभी देवी देवताओं की पूजा बड़े उत्साह और चाव के साथ की जाती है। हिंदु धर्म के लोग भगवान में शुरू से ही आस्था रखते हैं, और अपने – अपने देवी देवताओं की पूजा पूरी श्रद्धा से करते हैं।

वाल्मीकि रामायण में भी यह बताया गया है कि युद्ध में जाने से पहले श्रीराम ने जीत के लिए सूर्य की पूजा की थी।

सूर्य के वरूण रूप की पूजा करने की है परंपरा

इस बार 16 जुलाई को शुक्रवार के दिन पूजा का शुभ महूर्त निकला है। सूर्य पुराण के मुताबिक आषाढ़ महीने की सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य के वरूण रूप की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत की पूजा भी की जाती है। इस दिन उगते हुए सूरज को जल चढ़ाकर विशेष पूजा करनी चाहिए। साथ ही व्रत भी रखना चाहिए। इससे बीमारियां दूर होती हैं और दुश्मनों पर भी जीत मिलती है। भविष्य पुराण में भी भगवान सूर्य को जल चढ़ाने का महत्व बताया गया है।

भगवान सूर्य के साथ उनके पुत्र वैवस्वत की पूजा

आषाढ़ महीने की सप्तमी तिथि पर भगवान सूर्य के साथ उनके पुत्र वैवस्वत मनु की भी पूजा की जाती है। ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक अभी वैवस्वत मनवंतर चल रहा है। सूर्यदेव ने देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लिया था और विवस्वान एवं मार्तण्ड कहलाए। इन्हीं की संतान वैवस्वत मनु हुए जिनसे सृष्टि का विकास हुआ है। इन्हीं के नाम पर ये मन्वंतर है। शनि देव, यमराज, यमुना और कर्ण भी भगवान सूर्य की ही संतान हैं।

सूर्य पूजा करने से होते हैं फायदे

सूर्य को जल चढ़ाने से आत्मविश्वास बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। सप्तमी तिथि पर सूर्य को जल चढ़ाने और पूजा करने से बीमारियां दूर होती हैं। भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को सूर्य पूजा का महत्व बताया है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि सूर्य ही एक प्रत्यक्ष देवता हैं। यानी ऐसे भगवान हैं जिन्हें रोज देखा जा सकता है। श्रद्धा के साथ सूर्य पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सूर्य पूजा से दिव्य ज्ञान प्राप्ति होता है।

इस तरह करें सूर्य की पूजा

सुबह सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करें। संभव नहीं हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहाएं। इसके बाद भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें और चावल, फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। जल चढ़ाते समय सूर्य के वरूण रूप को प्रणाम करते हुए ऊं रवये नमरू मंत्र का जाप करें। इस जाप के साथ शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना करना चाहिए। इस प्रकार जल चढ़ाने के बाद धूप, दीप से सूर्य देव का पूजन करें।

सूर्य से संबंधित चीजें जैसे तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, लाल चंदन का दान करें। श्रद्धानुसार इन में से किसी भी चीज का दान किया जा सकता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा के बाद एक समय फलाहार करें।

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