मेजर शैतान सिंह भारतीय सेना के वो मेजर जिनकी बहादुरी को जिनके साहस को देश कभी भूल नहीं सकता है. उनकी कुर्बानी को सदा देशवासी याद करते रहेंगे. चीन की सेना को धूल चटाने वाले मेजर शैतान सिंह की शौर्य की गाथा को हमेशा सराहा जाता है.
1 दिसंबर को हुआ था इस बहादुर योद्धा का जन्म
आज 1 दिसंबर को भारतीय सेना के दिवंगत मेजर शैतान सिंह की जयंती है. उनको देश आज के लिये इसलिये याद करता है क्योंकि उन्होंने 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध में हिम्मत और साहस दिखाते हुए लोह मनवाया था. उनके नेतृत्व में हमारे देश की सेना के 120 जवानों ने चीन के 6 हजार सैनिकों को सबक सिखाया था. इस युद्ध के बाद मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र दिया गया था.
जोधपुर के राजपूत परिवार से थे शैतान सिंह
आपको बता दें शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को एक राजपूत परिवार में हुआ था. उस वक्त उनका परिवार जोधपूर में रहता था. उनके पिता भी सेना में थे. वो लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह थे. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना में सेवा दी थी. इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर (ओबीई) से सम्मानित किया था.
1949 में जोधपुर राज्य बल में हुए थे शामिल
बात शैतान सिंह करते हैं वो एक अगस्त 1949 को अधिकारी के तौर पर जोधपुर राज्य बल भर्ती हुए. साल 1962 में तड़के साढ़े तीन बजे शांत लद्दाख की घाटी में गोलियों की चलनी शुरू हो गई थी. पांच से छह हजार की संख्या में चीनी जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था. इस दौरान सीमा पर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी देश की सीमा की सुरक्षा कर रही थी. इस टुकड़ी में केवल 120 जवान थे. लेकिन 120 सैनिकों ने चीन के करीब 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था.
भारतीय सेना के पास नहीं थे आधुनिक हथियार
भारतीय सेना के पास न तो के पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही तकनीक. 120 जवानों की इस सेना का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे. जानकारी के मुताबिक, शैतान सिंह ने अकेले ही बहुत से चीनी सैनिकों को मार डाला था. इसी बीच उन्हें कई गोलियां लगीं.
चीनी सैनिकों ने मशीन गन से किया था हमला
बताया जाता है कि दो सैनिक उन्हें उठाकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे तभी एक चीनी सैनिक ने आकर मशीनगन से उन पर हमला कर दिया. जब शैतान सिंह पर हमला हुआ तो उन्होंने अपने साथी सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया और खुद मशीनगन के सामने आ गए.
युद्ध के बाद मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र दिया गया
120 भारतीय जवानों के सामने दुश्मनों की बड़ी फौज फिर भी मेजर के कुशल नेतृत्व के बलबूते 18 नवंबर 1962 का दिन इतिहास के रचा गया. मेजर को उनके शौर्य के चलते परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.