नई दिल्ली। असम में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के खिलाफ एक बार फिर आंदोलन शुरू हो गया है। असम कांग्रेस के नेताओं ने ही मोर्चा खोला है। करीब एक दर्जन विधायकों ने उनको नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि गोगोई का नेतृत्व कमजोर है और पार्टी को नया व युवा नेता आगे करना चाहिए। यह गोगोई विरोध का दूसरा चरण है।
पहले चरण में उनका विरोध करते करते हिमंता बिस्वा सरमा कांग्रेस पार्टी से बाहर हो गए। सोनिया और राहुल गांधी ने गोगोई के प्रति ऐसा भरोसा दिखाया कि सरमा को बिल्कुल घास ही नहीं डाली। ध्यान रहे इन दिनों हिमंता सरमा भाजपा में हैं और पूर्वोत्तर में उसके सबसे मजबूत और सबसे बड़े नेता हैं।
बहरहाल, गोगोई परिवार के प्रति नेहरू-गांधी परिवार का भरोसा पहले की ही तरह है। उनके बेटे गौरव गोगोई को राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल जैसे राज्य का प्रभारी बना रखा है। सो, संभव नहीं लग रहा है कि तरुण गोगोई को हटाया जाएगा। सोचें, उनकी उम्र 85 साल है और वे इस प्रयास में हैं कि 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उनके नेतृत्व में ही चुनाव में जाए।
उनको यह भरोसा इसलिए है कि 70 साल के भूपेंद सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने मौका दिया, 74 साल के कमलनाथ को भी मौका दिया और दिल्ली में 87 साल की शीला दीक्षित को भी मौका दिया गया था। कांग्रेस की मजबूरी है कि, जिसको 15 साल मुख्यमंत्री बनाए ऱखा, सारे साधन और संसाधन तो उसी के पास हैं। इसलिए चुनाव से डेढ़ साल पहले नेतृत्व बदलना जोखिम का काम हो सकता है। दूसरी ओर उनके विरोधी चाहते हैं कि अभी चुनाव में डेढ़ साल का समय है। उससे पहले अगर कांग्रेस गोगोई के कब्जे से मुक्त हो जाती है तो नए नेतृत्व में चुनाव लडा जा सकता है।