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आखिर क्या है वनाधिकार आंदोलन, क्यों सुलग रही विरोध की चिंगारी?

vanadhikar andolan आखिर क्या है वनाधिकार आंदोलन, क्यों सुलग रही विरोध की चिंगारी?
  • संवाददाता, भारत खबर

देहरादून। प्रदेश में जनता की मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन और अवांछित गतिविधियों का विरोध होता रहा है, इसी को देखते हुए वनाधिकार आंदोलन को चलाने की पुरजोर मांग उठने लगी और अंन्तत: कुछ जज्बाती लोगों ने इस आंन्दोलन को खड़ा कर दिया। तो आइए जानते हैं इस आन्दोलन की प्रमुख मांगे क्या हैं-

  • उत्तराखण्ड को वनवासी प्रदेश घोषित कर उत्तराखंडियों को केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।
  • जब दिल्ली की सरकार उत्तराखण्ड का पानी दिल्ली की जनता को फ्री दे सकती है तो उत्तराखण्ड सरकार को भी जनता को निशुल्क पानी दिया जाना चाहिए।
  • हमारे सारे ईंधन के कार्य जंगल से ही पूरे होते थे, इसलिए 01 गैस सिलेंडर व हर महीने निशुल्क मिलना हमारा हक़ है।
  • अपना घर बनाने के लिए हमे निशुल्क पत्थर बजरी लकड़ी आदि मिलना चाहिए तथा दिल्ली की तरह 200 यूनिट बिजली भी निशुल्क मिले।
  • युवाओं के रोजगार के लिए उत्तराखण्ड में उगने वाली जड़ी-बूटियों के दोहन का अधिकार स्थानीय समुदाय को दिया जाए।
  • यदि कोई जंगली जानवर किसी व्यक्ति को विकलांग कर देता है या मार देता है तो सरकार को 25 लाख रु मुआवजा व पक्की सरकारी नौकरी देनी चाहिए।
  • जंगली जानवरों द्वारा फसलों के नुकसान पर सरकार द्वारा तुरंत प्रभाव से 1500 रु प्रति नाली के हिसाब से क्षतिपूर्ति दी जाए।
  • वन अधिकार अधिनियम-2006 को उत्तराखण्ड में लागू किया जाए। और उत्तराखण्ड को प्रति वर्ष 10 हजार करोड़ ग्रीन बोनस दिया जाए।
  • तिलाड़ी काण्ड के शहीदों के सम्मान में 30 मई को वन अधिकार दिवस घोषित किया जाए।

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