नई दिल्ली। जस्टिस आर एम लोढ़ा और बीसीसीआई के बीच काफी समय से तनातनी चल रही है। दरअसल ऐसी खबरें आ रही थी कि लोढ़ा कमेटी की कुछ सिफारिशों को बीसीसीआई मानने के लिए तैयार नहीं है जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हालांकि बीसीसीआई ने कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि उसने लोढ़ा कमेटी की किसी भी सिफारिश को नजरअंदाज नहीं किया है। साथ ही इस बात से भी इंकार किया है कि उसने लोढ़ा कमेटी द्वार भेजे गए ई-मेल का जवाब नहीं दिया।
खबर के अनुसार कोर्ट ने बीसीसीआई से कहा कि बड़े भुगतान को लेकर पारदर्शिता बरतनी चाहिए और इसके लिए एक पॉलिसी होना बेहद जरुरी है। आप रातों रात सीधे 400 करोड़ का फंड यूं ही ट्रांसफर नहीं कर सकते और इसके लिए आपको लोढ़ा समिति की इजाजत लेनी पड़ेगी।
ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को लेकर बीसीसीआई पर कोई सख्त कदम उठा सकती है क्योंकि एमिकस क्यूरी ने इस मामले को लेकर कोर्ट से प्रशासनिक प्रमुखों को हटाने की सलाह दी है जिससे कि बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर की कुर्सी खतरे के घेरे में आ गई है। बता दें के सुनवाई के दौरान बीसीसीआई ने कोर्ट में पेश किए गए अपने जवाब में कहा कि हमने लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को नजरअंदाज नहीं किया। बल्कि बोर्ड के सदस्यों के साथ बैठक बुलाई थी जिसमें वोटिंग के जरिए कमेटी की सिफारिशों को खारिज कर दिया गया। इसके साथ ही बीसीसीआई ने कोर्ट में सबूत के तौर पर लोढ़ा कमेटी को भेजे गए 40 ई-मेल्स का रिकॉर्ड भी कोर्ट में पेश किया है।
गौरतलब है कि आईपीएल मैच फिक्सिंग मामले के बाद देश की शीर्ष अदालत ने क्रिकेट में सुधार लाने और खेल को स्वच्छ बनाने के लिए पूर्व प्रधान न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा के नेतृत्व में समिति का गठन किया था। समिति ने इसके बाद अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बीसीसीआई के अधिकारियों के लिए कड़े पात्रता मानदंड और उनके कार्यकाल के लिए सीमा तय करने की सिफारिश की थी। साथ ही समिति ने मंत्री, नौकरशाहों को बोर्ड में किसी तरह का पद देने की मनाही की थी। साथ ही 70 साल की उम्र से अधिक वाले अधिकारियों को भी बोर्ड में शामिल ना करने की बात कही थी। लेकिन जब से लोढ़ा कमेट बनी है तब से लेकर आजतक दोनों टकराव के रास्ते पर दिखाई दे रहे हैं। न तो बीसीसीआई ने कमेटी की सिफारिशों को माना है और न ही किसी भी मामले में सहयोग किया है।