- उमेश कुमार सिंह
नोएडा। शरीर में हड्डी एक प्रकार का ऐसा उत्तक होता है। जो कि शरीर को आकार और मजबूती प्रदान करता है। शरीर के कई अंगों का संरक्षण करना भी इसकी एक जिम्मेदारी होती है। हड्डी खनिज को अपने अंदर रखती है और रक्तसेलों के विकास के लिए एक माध्यम बनाती है, जिसे मैरो के नाम से जाना जाता है। हड्डी के तीन मुख्य उत्तक होते हैं-
कांपैक्ट टिश्यू यानि अविरल उत्तक-
यह ठोस उत्तक हड्डी के बाहरी हिस्से में होता है।
कैंसलस टिश्यू –
ये हड्डी के भीतर स्पांज की तरह गुदगुदा भाग होता है।
सबकोंड्रल टिश्यू-
हड्डी के कोनों के मुलायम भाग को सबकोंड्रल टिश्यू कहते हैं। यह कार्टिलेज नामक परत से ढक़ा होता है।
मुबंई स्थित पी.डी.हिंदुजा नेशनल अस्पताल के आर्थोपेडिक्स विभाग के हेड डा.संजय अग्रवाल का कहना है कि कांपैक्ट और कैंसलस टिश्यू को एक साथ पेरियोस्टियम कहते हैं। हड्डियों को उनके आकार और लंबाई के आधार पर भी बांटा जा सकता है। इंसान के शरीर में लगभग 206 हड्डियां होती हैं। जिसमें दांतों की हड्डियों को नहीं गिना जाता क्यों कि वे बेहद छोटी होती हैं। लगभग 80 हड्डियों को एक्सियल हड्डी कहते हैं जिसके अंतर्गत सिर, चेहरा, कान संबंधी, ट्रंक, पसली और गर्दन से पेट तक की हड्डी को शामिल किया जाता है। लगभग 126 एपेंडिक्युलर हड्डियां होती हैं, जिनमें बांह, कंधे, कलाई, हाथ, पैर, हिप्स, एड़ी और तलवे की हड्डी को शामिल किया जाता है।
कई प्रकार के हड्डी के सेल होते हैं जैसे:-
ओस्टियोब्लास्ट-
यह हड्डी के भीतर पाया जाता है। इसका कार्य है-कोशिकाओं और खनिज का निर्माण करना, जो कि हड्डी को ताकत प्रदान करता है।
ओस्टियोक्लास्ट –
यह बोन मैरो के अंदर बहुत बड़ा सेल होता है। इसका कार्य है-अनवांछित कोशिकाओं को हटाना।
ओस्टियोसाइट-
यह हड्डी के भीतर ही पाया जाता है। इसका कार्य है-हड्डी को जीवित कोशिका के रूप में बरकरार रखना। फैट सेल और हीमेटोपायोटिक सेल बोन मैरो में पाए जाते हैं। हीमेटोपायोटिक सेल का निर्माण करते हैं क्योंकि हड्डी के कार्य जटिल होते हैं जैसे शरीर को स्थिरता देने से लेकर रक्तसेलों का रख-रखाव आदि। तो, इन प्रक्रियाओं के चलते कई बीमारियां हड्डी को विकारग्रस्त कर सकती हैं। हड्डी की मुख्य बीमारियों को कुछ इस प्रकार से विभाजित किया जाता है।
1. हड्डी कैंसर-
2. फाइबरस डिस्प्लेसिया-
यह एक प्रकार का जन्मजात रोग होता है। बचपन में ही इसके लक्षण दिखने लगते हैं। किशोरावस्था तक आते-आते हड्डियों का विकास रुक जाता है।
3. ओस्टियोमलेशिया-
विटामिन डी की कमी के कारण या फिर विटामिन के मेटाबोलिज्म में किसी प्रकार की समस्या के चलते हड्डियां घिसने लगती हैं और निरंतर कमजोर होती चली जाती हैं। ओस्टियोपारोसिस की भांति, इसमें हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि अपने आप टूटने लगती हैं। इस बीमारी में हड्डियां मुलायम हो जाती हैं।
4. रिकेट्स-
हड्डी में बड़ी मात्रा में कैल्शियम की कमी के चलते बच्चों में हड्डी का निर्माण असामान्य हो जाता है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं जैसे आहार में कैल्शियम का सेवन न करना, धूप में न बैठना आदि। इससे हड्डियों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता।
5. ओस्टियोमाइयेलिटिस-
ओस्टियोमाइयेलिटिस हड्डियों में एक प्रकार का संक्रमण होता है, जिसका कारण है मवाद बनाने वाला विषाणु। ओस्टियोमाइयेलिटिस तीक्ष्ण संक्रमण के साथ ही शुरु होता है। कभी-कभी यह संक्रमण रक्तसे प्रारंभ होकर हड्डियों तक पहुंच जाता है।
6. अवेस्कुलर नेक्रोसिस-
यह एक प्रकार की ऐसी बीमारी है, जिसमें हड्डी के किसी भाग तक रक्तनहीं पहुंच पाता और धीरे-धीरे हड्डी का क्षरण होने लगता है। इसमें बहुत ही भयानक और जल्द न ठीक होने वाला दर्द होता है।
7. ओस्टियोपोरोसिस-
ओस्टियोपोरोसिस हड्डी की वह बीमारी है, जिसमें हड्डी का क्षरण होने लगता है और हड्डी की क्षमता कम होती जाती है। हड्डियों में आसानी से फ्रेक्चर हो जाता है। हड्डी का घनत्व कम हो जाता है। यह अक्सर वृद्ध लोगों में पाया जाता है। ओस्टियोपोरोसिस को ठीक करने के लिए अब एक नई तकनीक की शुरुआत की गई है-एल सी पी।
प्लेट तकनीक में अब एक नई उपलब्धि है-
डा. संजय अग्रवाला का कहना है कि लाकिंग प्लेट (एल सी पी), जिसका मुख्य आकर्षण है, इसके स्कू हैड और प्लेटों का आपसी जोड़। इसके परिणामस्वरूप बेहतर बायोमेकैनिकल गुण बनते हैं। इस एल सी पी को बाकी अन्य प्लेटों की तरह कार्य करने के लिए हड्डिïयों में लगाया जा सकता है, जैसे कि यह जोड़ पर दबाव बना सकता है, बचाव और ब्रिजिंग का काम आसानी से कर सकता है। जब कि बाकी दूसरी प्लेटें जैसे लैस इंवेसिव स्टेबिलाइजेशन सिस्टम (लिस्स)आदि प्लेट केवल ब्रिजिंग और अंदरूनी जोड़ का कार्य कर सकते हैं।
दरअसल, शंक्वाकार धागों से बनी इस स्क्रू हैड की सतह प्लेट के धागों के साथ अच्छी तरह फिक्स हो जाती है। जिसमें, बायोमेकैनिकल गुण बनते हैं। इसके कोणात्मक स्थिर स्क्रू की वजह से हड्डी को स्थिर करने के लिए अधिक दबाव बनाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
इन लाकिंग प्लेट्ïस को अंदरुनी जोड़ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वैसे आदर्श तौर पर इसका पेरिओस्ट्ïयूम से कोई संबंध नहीं होता है। इससे क्षतिग्रस्त हïड्डी में आसानी से रक्त प्रवाह होने लगता है और हड्डी कïो स्थिरता मिलती है जिससे कैलस फार्मेशन होता है और जल्द ही चोट ठीक हो जाती है। एल सी पी अस्थिर होता है। इसके पांचों बायोमेकैनिकल गुणों के कारण इसे अंदरूनी जोड़ के साथ-साथ रीडक्शन यंत्र की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, एल सी पी को इस्तेमाल करने से पहले ध्यानपूर्वक यह प्लानिंग कर लेनी चाहिए कि स्क्रू को कौन से आर्डर में लगाना है? लाकिंग हेड स्क्रू का इस्तेमाल करने से पहले यह बेहद जरूरी है कि फाइनल रीडक्शन ले ली जाए।