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जम्‍मू-कश्‍मीर में फैसल के इस्‍तीफे की खबर ने लोगों को बिलकुल भी नहीं किया हैरान

shah fasal जम्‍मू-कश्‍मीर में फैसल के इस्‍तीफे की खबर ने लोगों को बिलकुल भी नहीं किया हैरान

श्रीनगर। जम्‍मू-कश्‍मीर के शाह फैसल ने साल 2010 में यूपीएससी परीक्षा में टॉप किया था। इसके बाद वह राज्‍य में युवाओं की प्रेरणा बनकर उभरे थे। बुधवार को उन्‍होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से इस्‍तीफा दे दिया। उनके इस फैसले ने कई लोगों को हैरान किया। उन्‍होंने इस्‍तीफा देने की वजह घाटी में लगातार हो रही हत्‍याओं को बताया, लेकिन जम्‍मू-कश्‍मीर में फैसल के इस्‍तीफे की खबर ने लोगों को बिलकुल भी हैरान नहीं किया। ज्‍यादातर लोगों को उनकी मंशा का काफी समय से पता था। वह हाल ही में हार्वर्ड केनेडी स्‍कूल से लौटे थे। हार्वर्ड में रहने के दौरान उन्‍होंने कई बार सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार और ‘हिंदुत्‍ववादी ताकतों’ की आलोचना की थी। फैसल का आरोप था कि ये ताकतें देश में मुसलमानों को निशाना बना रही है। बुधवार को जब उन्‍होंने आईएएस से इस्‍तीफा दिया तब भी सरकार की आलोचना की।

shah fasal जम्‍मू-कश्‍मीर में फैसल के इस्‍तीफे की खबर ने लोगों को बिलकुल भी नहीं किया हैरान

 

बता दें कि शाह फैसल कश्‍मीर के सीमावर्ती कुपवाड़ा जिले के एक दूरदराज के गांव से आते हैं। उनका बचपन कश्‍मीर में मिलिटेंसी के उभार के समय में गुजरा। उनके पिता को भी 90 के दशक में आतंकियों ने मार दिया था। वह पहले डॉक्‍टर बने और बाद में आईएएस अफसर लेकिन उनके दिल में हमेशा जम्‍मू कश्‍मीर के हालात का दर्द रहा। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा कश्‍मीर मसले को संभालने के तरीके से भी वह नाराज थे। शुरू से ही वह इस मुद्दे पर मुखर थे और उन्‍होंने फेसबुक व टि्वटर के जरिए दिल की भड़ास निकाली। बाद में उनकी कुछ राजनीतिक दलों विशेष रूप से नेशनल कांफ्रेंस से भी करीबी हो गई थी। ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि वह जल्‍द ही राजनीति के मैदान में उतरने का ऐलान कर देंगे। यह अटकल आज आईएएस पद छोड़ने के साथ ही सच साबित हो गई।

वहीं जम्‍मू-कश्‍मीर में जल्‍द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे समय में उनका सरकारी नौकरी छोड़ना और मुख्‍यधारा की पार्टी में जाना निश्चित रूप से राज्‍य में युवाओं पर असर डालेगा और वे उन्‍हें अपना नायक मान सकते हैं। लेकिन जिस तरह से उन्‍होंने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्‍ट में ‘मुस्लिम कार्ड’ खेला वह अच्‍छी बात नहीं है। क्योंकि शाह को एक मुस्लिम के रूप में समान अवसर मिले और उन्‍होंने यूपीएससी की परीक्षा में अव्‍वल स्‍थान हासिल किया। ऐसा लगता है कि उन्‍होंने जानबूझकर ‘साम्‍प्रदायिक कार्ड’ खेला जिससे कि विधानसभा चुनाव से पहले कश्‍मीर में सहानुभूति और समर्थन हासिल किया जा सके।

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