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सिंधु समझौते पर पीएम मोदी: साथ-साथ नहीं बह सकते खून और पानी

water deal सिंधु समझौते पर पीएम मोदी: साथ-साथ नहीं बह सकते खून और पानी

नई दिल्ली| सिंघु जल संधि को लेकर सोमवार को एक बैठक हुई। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश सचिव एस. जयशंकर ने भी भाग लिया। इसे पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।

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खबर है कि पीएम मोदी ने इस बैठक में पीएम ने अधिकारियों से कहा कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते हैं। हम समझौते पर पुनर्विचार करने के लिए गंभीर हैं।यह बैठक उड़ी में आतंकी हमले को देखते हुए बुलाई गई थी। हमले में 18 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तानी आतंकियों को जिम्मेदार ठहराया है। इस हमले की वजह से पड़ोसी देश के साथ तनाव बढ़ गया है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के अमल को लेकर मतभेद है। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी सहयोगात्मक व्यवस्था के लिए सद्भाव और दोनों पक्षों के परस्पर भरोसे की जरूरत होती है। भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षर के जरिए विश्व बैंक ने जल बंटवारा संधि को वर्ष 1960 में तब कराया था, जब पाकिस्तान ने यह आशंका जताई थी कि सिंधु नदी बेसिन की नदियों का उद्गम भारत है और युद्ध के समय भारत द्वारा पाकिस्तान में सूखा और अकाल पैदा करने की आशंका बनी रहेगी। संधि के मुताबिक, तीन नदियों ब्यास, रावी और सतलुज पर भारत का नियंत्रण है और ये तीनों नदियां पंजाब से होकर बहती हैं।

संधि के मुताबिक, पाकिस्तान पश्चिमी नदियों सिंधु, चेनाब और झेलम को नियंत्रित करता है और ये नदियां जम्मू एवं कश्मीर से होकर बहती हैं। जम्मू एवं कश्मीर इस समझौते की समीक्षा करने की मांग कर रहा है, क्योंकि यह नदी जल के उपयोग के राज्य के अधिकारों को हथिया लेता है। भारत 18 सितंबर के उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान को आतंक के निर्यात को लेकर अलग-थलग करने के लिए कूटनीतिक प्रयास कर रहा है। सिंधु जल संधि पर बैठक को एक ऐसे संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि सरकार पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए अन्य विकल्प तलाश रही है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका की जल्द सुनवाई के लिए अपील- सिंधु जल समझौते को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक याचिका दायर की गई। यह याचिका समझौता की संवैधानिक और कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली दायर एक याचिका की शीघ्र सुनवाई के लिए किया गया है। याचिकार्ता वकील एम.एल.शर्मा ने शीर्ष अदालत से जल्द से जल्द याचिका पर सुनवाई का आग्रह किया है, जिसपर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सामान्य क्रम के अनुरूप ही इसकी सुनवाई होगी। याचिकाकर्ता ने जल समझौते की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी है कि संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने तर्क दिया कि संधि पर भारत के राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना चाहिए था।

 

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