ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट-सावित्री व्रत मनाया जाता है। इसमें सत्यवान, सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। यह व्रत रखने वाली महिलाओं का सुहाग अटल रहता है। ऐसा माना जाता है कि सावित्री ने इस व्रत के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से भी जीत लिया था।
कहते हैं बरगद के पेड़ में तीनों देवों का वास है। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरता के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएं व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
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