नई दिल्ली। अल्फ़्रेड पार्क उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा पार्क है जिसकी महागाथा आजादी के समय लिखी गई थी। अल्फ़्रेड पार्क ‘भारतीय इतिहास’ की कई युगांतरकारी घटनाओं का गवाह रहा है। यहीं वो पार्क है जहां महान् क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने प्राणों को हंसते हंसते कुर्बान कर दिया था।
स्वागत के लिए हुआ था निर्माण
अल्फ़्रेड पार्क का निर्माण राजकुमार अल्फ़्रेड ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के इलाहाबाद आगमन को यादगार बनाने हेतु किया गया था। पार्क के अंदर राजा जार्ज पंचम और महारानी विक्टोरिया की विशाल प्रतिमा भी लगाई गई थी। इसमें महारानी विक्टोरिया को समर्पित सफ़ेद रंग के मार्बल की छतरी बनी हुई है। पार्क में अष्टकोणीय बैण्ड स्टैण्ड है, जहाँ अंग्रेज़ सेना का बैण्ड बजाया जाता था।
अल्फ्रेड पार्क बना क्रांति का बना मंदिर
इस पार्क में ही चन्द्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेज़ पुलिस से हुई मुठभेड़ के दौरान शहादत पाई थी। भारत के एक और अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में चन्द्रशेखर आज़ाद ने ‘काकोरी षडयंत्र’ (1925) एवं ‘साण्डर्स गोलीकांड’ (1928) में सक्रिय भूमिका निभाई थी। अल्फ़्रेड पार्क में 1931 में आज़ाद ने रूस की बोल्शेविक क्राँति की तर्ज पर समाजवादी क्राँति का आह्वान किया था। आज़ाद ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ देश की आज़ादी के लिए संगठित हो प्रयास शुरू किए थे।
‘काकोरी काण्ड’ के बाद जब चन्द्रशेखर आज़ाद 27 फ़रवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ़्रेड पार्क में बैठे अपने मित्र सुखदेव राय से मंत्रणा कर रहे थे, तभी उन्हें घेर लिया गया। एक गद्दार देशद्रोही की गुप्त सूचना पर सी.आई.डी. का एस.एस.पी. नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने साथियों को तुरन्त ही वहाँ से निकल जाने को कहा। दोनों ओर से भयंकर गोलीबारी हुई। जब आज़ाद के पास सिर्फ एक गोली रह गयी तो उन्होंने अपने को आजीवन आज़ाद रखने की कसम को निभाते हुये आखिरी गोली अपनी कनपटी पर मार ली और शहीद हो गए। यह घटना हमेशा के ‘भारतीय इतिहास’ में दर्ज हो गई।
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