नई दिल्ली। मुस्लिम महिलाओं द्वारा सरकार से तीन तलाक को लेकर कानून बनाने की मांग का अभी निपटारा भी नहीं हुआ था कि एकाएक मुस्लिम महिलाओं के संगठन ने सरकार से एक और कानून बनाए जाने की मांग की है। मुस्लिम महिलाओं से जुड़े एक संगठन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि अब हमारे समाज के लिए ”मुस्लिम परिवार कानून” को लाया जाए। साथ ही संगठन ने सरकार और विपक्ष से इस मुद्दे पर राजनीति करने के बजाए फैसला लेने को कहा है। ताकि संतुलित कानून विकसित हो सके।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने एक बयान जारी करते हुए इस कानून की मांग की है और कहा है कि सरकार को अब प्रगतिशील महिलाओं की आवाज सुननी चाहिए। संगठन का कहना है कि लोकसभा द्वारा पारित अध्यादेश में बीएमएमए की संशोधन की मांगो पर सरकार ने अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है। संगठन के मुताबिक महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए पुरुषों को डराकर रखने वाले एक संतुलित कानून की जरूरत है।
बीएमएमए ने सरकार के समक्ष इस संशोधित संस्करण को पेश कर उसकी सहायता की है। उन्होने सवाल पूछा है कि सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को कुरान और संवैधानिक प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने के लिए पिछले एक दशक से काम कर रही महिलाओं की आवाज को दबाना क्यों चाहती है? संगठन ने कहा कि कुरान के साथ-साथ संविधान के कई अनुच्छेदों में इन सभी मामलों में महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण स्पष्ट रूप से किया गया है।
बयान में कहा गया है कि ये दुर्भाग्यवश, रूढ़िवादी समाज की पुरुष प्रधान सोच के कारण महिलाएं न्याय से वंचित हैं। संगठन ने संसद को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उसी तरह का मुस्लिम परिवार कानून पारित करने की मांग की है, जिस तरह का कानून उसने ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955’ और ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956’ पारित किया था। संगठन के अनुसार, भारत में मुस्लिम महिलाओं को ‘शरीयत आवेदन अधिनियम, 1937’ के साथ-साथ ‘मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939’ का विघटन करके या एक कानून बनाया जाए।