नई दिल्ली। सोशल मीडिया के जमाने में कौन क्या लिख रहा है, इस पर किसी की लगाम नहीं रह गई है। जो पावरफुल है वह इसका उपयोग अपने विरोधी के विरुद्ध हर तरह से कर रहा है, लेकिन जब सत्ताधारी पावरफुल व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध उसी तरह की बातें सोशल मीडिया पर आती हैं तो कई बार लिखने वाले की तलाश शुरू हो जाती है। कुछ को पकड़ने में सफलता भी मिल जाती है। उसकी अच्छी तरह सेवा करके हवालात में डाल दिया जाता है, जेल भेज दिया जाता है।
रही बात प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रानिक मीडिया की तो ऐसे कितने पत्रकार हैं जो अपनी और अपनी संस्था की साख को दाव पर लगाकर फर्जी खबर देते हैं? जो देते हैं वो बदनाम हो जाते हैं। मीडिया और सियासी गलियारों में सभी को पता चल जाता है कि यह पत्रकार विश्वसनीय नहीं है। फर्जी है और दलाल है। यदि कोई पत्रकार फर्जी खबर लगाता है तो उसके विरुद्ध बाकायदा मुकदमा चलाया जा सकता है। न्यायालय से दंडित होगा। उसे पीआईबी से मान्यता मिली है तो वह भी रद्द होगी। अगर वह पत्रकार किसी साखदार या ईमानदार संस्था में काम करता है तो वहां से भी बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन यदि वह संस्था ही ऐसी हो, जिसका मालिक ही उसी तरह का धंधा कराता है, उसी ने ऐसे को नियुक्त किया हो, उससे ऐसे ही काम कराता हो, किसी विपक्षी या विरोधी के विरुद्ध फर्जी खबरें लगवाता हो और वह मालिक सत्ताधारी पार्टी में हो या उसकी कम्पनी में सत्ताधारी पार्टी के पावरफुल मंत्रियों, नेताओं का घोषित-अघोषित पैसा लगा हो, तब क्या होगा?
ज्ञात रहे कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि पत्रकारों की मान्यता के लिये संशोधित दिशा-निर्देशों के मुताबिक यदि फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पहली बार ऐसा करते पाये जाने पर पत्रकार की मान्यता छह माह के लिये निलंबित कर दी जायेगी। तीसरी बार उल्लंघन करने पर मान्यता स्थाई रूप से रद्द कर दी जायेगी। फर्जी खबर प्रिंट मीडिया से संबद्ध है तो भारतीय प्रेस परिषद, इलेक्ट्रानिक मीडिया से संबद्ध है तो न्यूज ब्राडकास्टर एसोसिएशन को भेजी जायेगी। महज 15 दिन में निर्णय करना होगा कि खबर फर्जी है या नहीं। सरकार के इस फरमान पर वरिष्ठ वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी कहते हैं, “सब पर कार्रवाई का प्राविजन है और पहले से है। प्रेस काउंसिल आफ इंडिया तो इसी के लिए है।
ऐसे में केन्द्र सरकार, उसका सूचना प्रसारण मंत्रालय या उसकी मंत्री या अफसर, ये कुछ नया नहीं कर रहे हैं। हां, अब इसे आधार बनाकर कुछ पत्रकारों को निशाने पर लिया गया तो वे न्यायालय जरूर जा सकते हैं। सरकार, मंत्री, अफसर, पदाधिकारी, जांच एजेंसियां और उनके अधिकारियों को समन हो सकता है। पहले तो यह था कि जब कोई पत्रकार कोई गलत खबर देता था या दलाली वाली खबर छपती थी तो पत्रकार विरादरी और समाज उसका बहिष्कार करता था। अब तो हर जगह चाहे पत्रकारिता जगत हो या समाज अथवा राजनीति, ज्यादातर ऐसे ही लोगों की पूछ हो रही है। ऐसे में कोई भी नया नियम बना या सरकार ने नया फरमान जारी कर विरोधियों को फंसाने का उपक्रम शुरू हुआ तो यह विवाद का कारण बन सकता है।