नई दिल्ली। दिल्ली के साल 2013 के विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। इस दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल ने साल 1984 में हुए सिख दंगों की दोबारा जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी थी। इसके बाद जब पंजाब में ये खबर पहुंची तो पंजाब की 60 फीसदी सिख आबादी केजरीवाल के इस फैसले से खासी प्रभावित हुई। इसी का नतीजा था कि दिल्ली में लोकसभा की सातों सीटे हारने वाली आप को पंजाब की चार लोकसभा सीटों पर जीत मिली जिसके बाद पंजाब के कई बड़े चेहरों ने केजरीवाल के साथ हाथ मिलाना शुरू कर दिया।
पंजाब के कई बड़े सिंगर और अभिनेताओं ने आम आदमी पार्टी को ज्वाईन कर लिया। हालांकि पंजाब विधानसभा चुनाव आते-आते पार्टी की स्थिति पंजाब में थोड़ी धूमिल तब हुई जब पटियाला से पार्टी के सांसद धर्मवीर गांधी ने केजरीवाल की नीतियों का डटकर विरोध किया, बावजूद इसके वो पार्टी के सांसद बने रहे, जिसके चलते पार्टी को लगने लगा की वो दिल्ली की तरह पंजाब की सत्ता पर भी काबिज जो जाएगी। 2017 आते-आते पार्टी की प्रदेश में काफी अच्छी पकड़ बन चुकी थी। नतीजन पंजाब में सरकार बनाने का सपना देखने वाले केजरीवाल ने तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर खुद को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया। केजरीवाल का यही लालच उन्हें ले डूबा।
केजरीवाल के इस लालच के कारण साल 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के कई बड़े दिग्गज नेता हार गए, जिनमें पंजाबी फिल्मों के अभिनेता गुरप्रीत सिंह घुग्गी भी थे। आपको बता दें कि घुग्गी पर कट्टरपंथियों को समर्थन देने के आरोप लगते रहे है, जिसका पूरा फायदा कांग्रेस ने उठाया और जनता ने आप को नाकारते हुए कांग्रेस को पंजाब की सत्ता पर काबिज कर दिया। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से 100 सीटें जीतने का दम भरने वाले केजरीवाल की ऐसी किरकिरी हुई की उनकी पार्टी 20 सीटों पर आकर सिमट गई और सरकार बनाने की बजाए विपक्ष में आ गई। विधानसभा चुनाव में मतदान से कुछ ही समय पहले कथित आतंकी के घर पर रुकने के फैसले के बाद से केजरीवाल के खिलाफ पंजाब में शुरू हुई बगावत ने आखिरकार नशे के मामले में आरोप लगाने के बाद माफी मांगने से पार्टी का अस्तित्व ही खत्म कर दिया है।