नई दिल्ली। 26/11 एक ऐसी तारीख है जिसे अगर भारत भूलाना भी चाहे तो नहीं भूला सकता। 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमले को भला कौन भूल सकता है। ये तारीख मुंबई के इतिहास में खून से रंगी हुई है। जिसकी रविवार को 9वीं बरसी थी। 26 नवंबर को 10 हमलावरों ने पूरे मुंबई को खून से रंग दिया था। जिसके निशान और जख्म आज तक मौजूद हैं। 26 नवंबर 2008 की रात करीब 9.50 बजे मुंबई में शुरू हुए इस आतंकी हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशन सीएसएमटी सहित, ताज होटल, होटल ट्राइडेंट, लियोपोल्ड कैफे और नरीमन हाउस सहित सड़क पर चलते कुछ वाहनों को भी निशाना बनाया गया था।
इस हमले को अंजान देने के लिए पाकिस्तान से आए 10 आतंकादियों ने मुंबई में मौत का खूनी खेल खेला था। हालांकि मुंबई पुलिस की मुस्तैदी के कारण 10 में से 9 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। वहीं इस हमलें में मुंबई पुलिस के कई जाबांज अधिकारी भी शहीद हो गए थे। हमारे देश की छाती को खून से लाल करने आए उन आतंकवादियों से इन अधिकारियों ने जमकर लोहा लिया था। इन जांबाज सिपाहियों में शामिल थे हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अशोक कामटे, संदीप उन्नीकृष्ण और तुकाराम ओंबले समेत कुल 11 पुलिस अधिकारी। आज हम आतंकवादियों को मौत की नींद सुलाने वाले इन अधिकारियों को सलाम करते हैं, आईए जानते हमारे इन जांबाज सिपाहियों की जिंदगी से जुड़े कुछ पहलू।
हेमंत करकरे
साल 2008 के मुंबई बम धमाकों के समय आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हेमंत करकरे उस समय आतंक विरोधी दस्ते के प्रमुख थे। हेमंत ने मुंबई हमलों के दौरान आतंकवादियों से जमकर लोहा लिया और फिर वीरगति को प्राप्त हो गए। 1982 बैच के आईपीएस अधिकारी करकरे ने नागपुर के विश्वेश्वर रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की ड्रिग्री हासिल की थी। करकरे ने डॉ.केपी रघुवंशी से मुंबई एटीएस के प्रमुख का पदभार संभाला था। इसी के साथ वो चंद्रपुर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भी काम कर चुके थे।ऑस्टिया में सात साल तक अपनी सेवाएं देने के बाद उन्होंने साल 2008 की जनवरी में ही मुंबई एटीएस का पदभार ग्रहण किया था। मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान देश ने हेमंत करकरे के रुप में एक जाबांज और दिलेर अधिकारी को खो दिया। बताते चलें कि स्वभाल से बेहत शांत और संयमी माने जाने वाले करकरे पुलिस महकमे में अपनी ईमानदारी और निष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे।
विजय सालस्कर
26\11 के मुंबई हमले के दौरान आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए विजय सलास्कर मुंबई पुलिस में उस समय एक सेवारत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और एंनकाउंटर स्पेशलिस्ट थे। इन्हें मुंबई हमलों के दौरान खास तौर पर आतंकवादियों को मौत के घाट उतारने के लिए भेजा गया था। इन्हे अलग-अलग मुठभेड़ में 75 से 80 अपराधियों को मार गिराने का श्रेय जाता है, जिनमें ज्यादातर अरुण गवली के गिरोह के सदस्य थे। विजय सालस्कर को इनकी बहादूरी के लिए भारत सरकार ने अशोक चक्र से सम्मानित किया था। सालस्कर 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे।
अशोक कामटे
26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए अशोक कामटे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे। 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी कामटे अपने बैच के सबसे ज्यादा काबिल अफसरों में से एक माने जाते थे और वो हर चुनौती का सामना बड़ी ही बहादुरी से और डटकर किया करते थे। वो आतंकवादियों के चंगुल से बंधकों को अपनी हौशियारी के बल पर छुड़वाने में हमेशा कामियाब रहे थे,जिसके चलते उन्हें मुंबई हमलों के दौरान आतंकवादियों से बात करके बंधकों को छुड़वाने का काम सौंपा गया था। इसी के साथ उन्हें हमले के दौरान मेट्रो सिनेमा के पास आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी, जिसे अंजाम देते समय वो वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी शहदत के बाद 28 नवंबर 2008 को उनका मुंबई के वैकुंठ श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था।
संदीप उन्नीकृष्णन
26\11 के हमलों में वीरगति को प्राप्त हुए संदीप उन्नीकृष्णन भारतीय सेना में मेजर के पद पर तैनात थे, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड्स के विशेष कार्य समूह में काम किया था। संदीप 2008 के मुंबई हमलों के दौरान आतंवादियों से लोहा लेते समय शहीद हो गए थे। उनकी इस बहादूरी के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत 26 जनवरी 2009 को भारत के सर्वोच्च शांति और बहादूरी पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया था। हमले के दौरान उनके साथ मौजूद कुछ लोग बताते हैं कि उन्होंने आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए हमसे कहा था कि ”ऊपर मत आना, मैं उन्हें संभाल लूंगा”। अधिकारियों का मानना है कि वो ऑपरेशन ब्लैक टोरनेडो के दौरान मुंबई के ताज होटल के अंदर आतंकवादियों की गोली का शिकार होकर शहीद हो गए।
उनके कौशल को लेकर बताया जाता है कि जब ऑपरेशन के दौरान एक कमांडो घायल हो गया, तो मेजर संदीर ने उस घायल कमांडो को बाहर निकलाने की व्यवस्था खुद की और आतंकवादियों की गोलीबारी का जवाब देने लगे। इस दौरान आतंकवादी मेजर की बाहदुरी का सामना नहीं कर सके और वो भाग कर होटल की किसी दूसरी मंजिल पर चले गए और मेजर भी उनके पीछे-पीछे हो लिया और आंतकियों से लोहा लेते हुए गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में वीरगति को प्राप्त हो गए।
तुकाराम ओम्बले
मुंबई पुलिस में सहायक उप पुलिस इंस्पेक्टर के तौर पर तैनात तुकाराम गोपाल ओम्बले 26 नवंबर 2008 को आतंकादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। आपको बता दें कि इन्होंने 10 में से एक आतंकवादी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ने में सफलता हासिल कि थी, लेकिन इसी दौरान अजमल कसाब ने इन पर ताबतोड़ गोलिया चला दी और ये उसी समय वीरगति को प्राप्त हो गए। तुकाराम ओम्बले के इस सहास और बहादुरी के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत 26 जनवरी 2009 को अशोक चक्र से सम्मानित किया था। ओम्बले मुंबई पुलिस में एक सहायक उप इंस्पेक्टर के तौर पर तैनात थे।