नोएडा। नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और पहले दिन ही भक्तों की मंशा मां को प्रसन्न करने की होती है। शारदीय नवरात्रि रविवार से शुरू होकर पूरे नौ दिनों तक चलेगा। प्रथम दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना की जाती है।
विधि विधान से की गई पूजा में कलश स्थापना करने के बाद मां के शैल पुत्री अवतार की पूजा की जाती है। कहते हैं कि मां का स्वरूप शांति और उत्साह देने वाली और भय नाश करने वाली हैं। मां की पूजा करने से शक्ति और आराधना होती है। माता शैलपुत्री अस्थिर मन को केंद्रित कर भक्तों में नया उत्साह भरती हैं और मन मांगी मुरादें देती हैं।
ये है मां शैलपुत्री की कहानी इस प्रकार है
समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित करते हुए दक्ष प्रजापति ने यहां महायज्ञ का आयोजन किया जिसमें भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा गया। बताया जाता है कि दक्ष प्रजापति अपने दामाद भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। कहते हैं कि सती अपने पिता के यहां यज्ञ की बात सुनकर भगवान शिव के मना करने बावजूद उनके यहां चली जाती हैं। वहां अपने पति शिव का अपमान देखकर सती यज्ञ को नष्ट कर देती हैं और स्वयं को यज्ञ वेदी में भस्म कर लेती हैं। अगले जन्म में सती का जन्म में शैलराज हिमालय के घर होता है और सती शैलपुत्री के नाम से विख्यात होती हैं।
माता शैलपुत्री बैल पर सवार रहती हैं और उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल पुष्प होता है। उनके माथे पर चंद्रमा शोभायमान है।
मंत्र
- शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी। पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी। रत्नयुक्त कल्याण कारीनी।।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
बीज मंत्र— ह्रीं शिवायै नम:।
पूजा की विधि:
कलश स्थापना के बाद मन में दुर्गा पूजा का संकल्प लें और शैलपुत्री स्वरूप की विधि विधान से पूजा करें। अक्षत, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प आदि अर्पित करें। माता के मंत्र का उच्चारण करें। फिर अंत में कपूर या गाय के घी से दीपक जलाकर उनकी आरती उतारें और शंखनाद के साथ घंटी बजाएं। इसके बाद माता को जो भी प्रसाद चढ़ाया है, उसे लोगों में बांट दें। यदि आप व्रत हैं, तो प्रसाद से फल स्वयं भी खा सकते हैं।