नई दिल्ली। देश में नोट बंदी को लेकर जनता से राजनेता तक सभी हलकान और पेरशान हैं। आज नोटबंदी के फैसले को आये 12 दिन हो गये हैं लेकिन बैंकों और एटीएम मशीनों पर लोगों की भीड़ लगातार पैसों के इन्तजार में खड़ी है। पूरा देश केवल पैसे जमा करने औऱ निकालने की लाइन में सुबह से देर रात तक दिख रहा है। लेकिन मुश्किलें भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से इस बावत जबाब मांगा है कि आखिर क्या वजह है कि लोगों की लाइने कम होने के बजाय रोजाना बढ़ रही हैं।
राजनीतिक दलों में मचा है घमासान
मोदी सरकार के नोट बंदी के फैसले केबाद जनता के साथ सबसे ज्यादा परेशान राजनेता हैं। लगातार सरकार को सड़क से लेकर संसद तक में इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश में हैं। हर राजनीतिक दल सरकार के इस फैसले को गलत करार देते हुए कह रहा है कि सरकार का नोटबंदी का फैसला तैयारी के बिना किया गया तुगलकी फैसला है। लेकिन इस फैसले को लेकर सत्ता के गलियारो से लेकर घरों की दहलीज में जनता की राह अलग-अलग है। फिर भी विपक्ष है कि सरकार को इस फैसले पर बैकफुट पर लाने की जद्दोजहद कर रहा है।
जनता है हलकान
8 नवम्बर को 500 और 1000 के नोटों की बंदी की घोषणा के बाद जनता की लाइने बैंकों के बाहर लग गई। कोई एटीएम के बाहर लाइन में तो बैंक के बाहर कहीं नोट खत्म होने की बात तो कहीं कतारें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। जनता तकरीबन नोट बंदी के फैसले के बाद से जरूरत के सामानों पर खर्च करने में कोताही बरतने लगी है। हांलाकि सरकार ने आवश्यक सेवाओं में नोट लिए जाने को लेकर आदेश जारी किए हैं फिर भी जनता के लिए अभी कोई बड़ी राहत नहीं मिली है।
कारोबारी सीजन में श्रमिकों का बढ़ा पलायन
1000 और 500 के नोटों की बंदी से मजदूरों के कामों पर खासा असर पड़ा है। क्योंकि रूपये की बंदी से जहां लोगों को रूपये पाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं इनको मिलने वाली मजदूरी पर भी संकट के बादल छाने लगे हैं। क्योंकि इस मामले में जहां दिक्कतों के साथ पैसे मिल रहे हैं, वही पैसे भी सीमित ही दिये जा रहे हैं ऐसे में जहां व्यापार का सारा काम मजदूर वर्गों को मिलने वाली नगद राशि से चलता था ऐसे में वो ठप्प पड़ गया है। ऐसे में वो भी पलायन को मजबूर हैं।
जनता हलकान है लोग परेशान है नेता शोर मचा रहे हैं। लेकिन फिर लोगों का एक बड़ा वर्ग पीएम के फैसले को सही कदम बता रहा है। उनका मानना है कभी कभी अच्छा करने के लिए कुछ बड़े और सख्त फैसले लेने पड़ते हैं। इस पर फिल्म का डॉयलाग याद आ गया फिल्म थी रंग दे बसंती, जहां एक सीन में यह डॉयलाग आता है कि “क्योंकि कोई देश परफेक्ट नहीं होता उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है।”
(अजस्र पीयूष)