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इतिहास के माथे पर, खून से लथपथ, एक युद्धस्थल

images 4 इतिहास के माथे पर, खून से लथपथ, एक युद्धस्थल

मैं कुरुक्षेत्र हूँ
इतिहास के माथे पर
खून से लथपथ
एक युद्धस्थल

मैं साक्षी हूँ
एक नरसंहार का
मेरे कानों को
सुनाई देते हैं आज भी
अधकटे हुए सैनिकों के
दारुण चीख़
मुझे नहीं सोने देती हैं
माताओं,विधवाओं,बच्चों का
करुण विलाप

मुझसे अब भी
नज़र नहीं मिला पाते हैं
महाभारत के सभी
अमरत्व प्राप्त योद्घा
जिन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा में
अपनी व्यक्तिगत प्रतिस्पर्द्धा में
कितनी ही पीढ़ियों को
अपंग किया
जिन्होनें
पहली बार
युद्ध का उत्सव मनाया
और
मानव को दानव बनाया

मैं भी किसी
उपजाऊ भूमि की भाँति
हरे-भरे पेड़ खिला सकता था
मैं भी घर दे सकता था
खगों को
और
क्षुधा शान्त कर सकता था
थके हुए पथिकों का

पर
मुझ पर
मढ दिया गया है
किसी का पौरुष
और
मुझे
पेश किया गया है
एक रक्कासा की भाँति
समय की महफिलों में
और
रोज़ मुझे नचाया जाता है
सरेआम राजनीतिक गलियारे में
परोसा जाता है मुझे
मेरे ग्राहकों के सामने
ताकि में ठीक से
महाभारत की छवि पेश कर सकूँ
हज़ारों साल पुरानी संस्कृति को जीवित रखने के लिए
मैं मर सकूँ

क्या
मैं
कभी भी
मुक्त हो पाऊँगा
ज़बरदस्ती के प्रपंचों से
और
सुना पाऊँगा
मैं क्या महसूस करता हूँ
क्यों
सच कहते हुए भी डरता हूँ
क्यों मैं इतना कायर हो गया
क्यों नहीं अपने अस्तित्व के लिए
सबके आगे अड़ गया

सुनो
कभी
मुझे भी
मुझे भी लाल नहीं
हरा होना है
इतिहास का नहीं
वर्तमान का रस पीना है
मुझे मेरे होने की आज़ादी दे दो
मैं कुरुक्षेत्र हूँ
लाशों की नहीं
जिंदों की आबादी दे दो ।।

रचनाकार:
सलिल सरोज
G006, Tower 3
Panch sheel Pebbles
Vaishali Sector 3
Ghaziabad
Uttar Pradesh 201034

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