नई दिल्ली। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग रुपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के सबसे पहले दिन मां दुर्गा के रुप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रुप में जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस रुप को ‘शैलपुत्री’ कहा गया। मां शैलपुत्री का रुप बहुत दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किया हुआ है और उन्होंने बैल की सवारी की हुई हैं।
मां शैलपुत्री को सभी जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि मां के इस रुप की पूजा करने पर सभा आपदाओं से मुक्ति मिलती है। इसी वजह से किसी भी दुर्गम स्थान पर बस्ती बनाने से पहले मां दुर्गा के इस रुप की पूजा की जाती है। लोगों का विश्वास है कि मां शैलपुत्री की स्थापना से वह स्थान सुरक्षित हो जाता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि मां की मूर्ति स्थापित होने के बाद उस स्थान पर आपदा, रोग, व्याधि, संक्रमण का खतरा नहीं होता और लोग चिंता मुक्त होकर अपना जीवन व्यतीत कर सकतें हैं।