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जानें महर्षि वाल्मीकि कौन थे, कैसे मिली रामायण लिखने की प्रेरणा

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वाल्मीकि जंयती स्पेशल। रामायण की रचना संस्कत में करने वाले महर्षि वाल्मीकि की आज जयंती है। हर वर्ष 31 अक्टूबर को ही महर्षि वाल्मीकि जयंती धूम-धाम से मनाई जाती है। इनका जन्मदिन हर वर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस बार कोरोना महामारी की वजह से वाल्मीकि जयंती मनाने के लिए कम ही प्रबंध किए गए हैं। वाल्मीकि के महर्षि बनने के पीछे बहुत बड़ी वजह है। पहले महर्षि वाल्मीकि एक डाकू हुआ करते थे। तो आज हम आपको बताते हैं कि डाकू से महर्षि वाल्मीकि बनने तक का सफर।

डाकू से महर्षि बनने तक का सफर-

बता दें कि पौराणिक मान्याताओं के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकार था। इनके पिता सृष्टि के रचियता परमपिता ब्रह्या के मानस पुत्र थे। परंतु जब रत्नाकार बहुत छोटे थे तब इन्हें एक भीलनी ने चुरा लिया था। ऐसे में इनका लालन-पालन भी भील समाज में हुआ। उस समय भील राहगीरों को लूटने का काम करते थे। वाल्मीकि ने भी भीलों का ही रास्ता अपना लिया और राहगीरों का लूटने का काम-धंधा अपनाया। आपने तो सुना ही है व्यक्ति जैसी संगत में रहता है उस पर प्रभाव भी वैसा ही पड़ता है। ये काम करते हुए उन्हें कई साल हो गए थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार- एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकार ने इन्हें पकड़ लिया। तब बंदी नारद मुनि ने रत्नाकार से एक सवाल पूछा कि तुम ये सब क्यों करते हो तो डाकू ने कहा अपने परिवार के लिए। तब नारद मुनि ने पूछा क्या तुम्हारे घरवाले भी तुम्हारे बुरे कर्मों के साझेदार बनेंगे। इस पर रत्नाकार अपने घरवालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया। जिसपर उन्होंने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। जिसे सुनकर रत्नाकार को बहुत दुख हुआ और उसका ह्दय परिवर्तन हो गया। साथ ही उसमें अपने जैविक पिता के संस्कार जाग गए। जिसके बाद डाकू रत्नाकार ने नारद मुनि से मुक्ति का रास्ता पूछा। जिसके बाद नारद मुनि ने रत्नाकार को राम नाम का जाप करने की सलाह दी।

ऐसे पड़ा वाल्मीकि नाम-

आगे बता दें कि रत्नाकार के मुंह से राम की जगह मरा-मरा निकल रहा था। इसकी वजह उनके पूर्व कर्म थे। नारद ने उन्हें यही दोहराते रहने को कहा और कहा कि तुम्हें इसी से राम मिल जाएंगे। मरा-मरा का जाप करते-करते कब रत्नाकार डाकू तपस्या में लीन हो गया पता ही नहीं चला। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्या जी ने उसे वाल्मीकि नाम दिया और साथ ही रामायण की रचना करने करे कहा।

 

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