जिस तरीके से बीते दिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस के साथ क्रूड डील पर भरोसा कम होने के लिए का इशारा किया और यूक्रेन को लेकर भारत को अस्थिर बताया तो कोई उनसे पूछे कि जब चीन ने जब पूर्वी लद्दाख में हिमाकत की तो भारत के सैनिकों ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया।
यह भी पढ़े
झड़प के बाद भी अमेरिका ने यूक्रेन जैसे गंभीरता नहीं दिखाई और न ही चीन को आगाह किया। अब वह चाहता है कि भारत यूक्रेन पर हमले के चलते रूस के खिलाफ उसके खेमे में आ जाए।
अब रिश्तों की गर्मजोशी क्यों दिखा रहा अमेरिका?
बाइडन के भारत को ‘असमंजस स्थिति में’ बताने के बाद अब अमेरिका ने रिश्तों की गर्मजोशी फिर से दिखाने की कोशिश की है। रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो अमेरिका समेत नाटो देश विरोध में खुलकर खड़े हो गए।
अमेरिका की रणनीति
चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्क रूस के करीब दिखे तो भारत ने दशकों पुरानी नीति पर आगे बढ़ते हुए गुटबाजी से खुद को दूर रखा। संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से गैरहाजिर रहने के भारत के फैसले को रूस के फेवर में समझा गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का तंज
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन संकट को लेकर भारत के रवैये पर तंज कसा। उन्होंने क्वॉड समूह के सदस्यों का जिक्र करते हुए कह दिया कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के खिलाफ समर्थन दिखाने में भारत की स्थिति थोड़ी असमंजस वाली है।
24 घंटे में ही अमेरिका ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश
हालांकि 24 घंटे के भीतर ही अमेरिका ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की और विदेश विभाग की ओर से कहा गया कि भारत उसका महत्वपूर्ण भागीदार है, मतलब ताना मारकर अमेरिका ने वापस भारत से संबंधों की दुहाई देकर गर्मजोशी दिखाने की कोशिश की है। दरअसल, अमेरिका नहीं चाहता कि रूस के चक्कर में भारत से उसके संबंध कमजोर पड़ें।
बाइडन ने कहा क्या था?
एक दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि ज्यादातर मित्रों और सहयोगियों ने व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रुख से निपटने में एकजुटता दिखाई है। बाइडन ने कहा, ‘पुतिन को अच्छी तरह जानने के कारण एक चीज को लेकर मैं आश्वस्त हूं कि उन्हें NATO में फूट पड़ने का भरोसा था। उन्होंने सोचा नहीं था कि नाटो पूरी तरह एकजुट रहेगा। इसी दौरान उन्होंने क्वॉड सदस्यों का जिक्र करते हुए भारत पर अंगुली उठा दी।
भारत के अलावा क्वाड एकजुट
बाइडन ने कहा कि रूस के आक्रमण के जवाब में नाटो और प्रशांत क्षेत्र में हमने एकजुटता दिखाई है। भारत के अलावा क्वॉड एकजुट है। भारत की स्थिति पुतिन के आक्रमण से निपटने के लिहाज से थोड़ी असमंजस वाली है। लेकिन जापान और ऑस्ट्रेलिया काफी मजबूत हैं। बाइडन ने कहा कि नाटो और प्रशांत क्षेत्र में हमने मिलकर रूस की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने और प्रतिबंध लगाने के लिए काफी कुछ किया। बाइडन चाहते हैं कि भारत भी रूस से संबंधों को भूलकर यूक्रेन के मसले पर उसके विरोध में खड़ा हो जाए।
आखिरकार अमेरिका चाहता क्या है
सीधे-सीधे अगर कहें तो अमेरिका एशिया में वह चीन के खिलाफ भारत की बड़ी भूमिका चाहता है तो द्विपक्षीय हित भी जुड़े हैं। वैसे भी, नई सदी में दोनों देशों के संबंध मजबूत होकर उभरे हैं।
चीन के दुस्साहस पर क्यों खामोश था अमेरिका?
रूस के हमले पर भारत के रवैये पर बाइडन ने ताना मारा तो भारतीय विश्लेषकों ने उन्हें चीन के दुस्साहस की घटना भी याद दिला दी। उन्होंने यह भी बताया कि सुबह से शाम तक रूस के खिलाफ बोलने वाले अमेरिका और उसके कई यूरोपीय सहयोगी देश अब भी रूस से ऊर्जा खरीद जारी रखे हुए हैं। इसकी वैल्यू करीब 600 मिलियन डॉलर प्रतिदिन है।
बाइडन ने चीन पर मुंह क्यों नहीं खोला
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने कहा कि जब चीन ने सीमा पर आक्रामक कार्रवाई की तो फुल-स्केल वॉर का खतरा पैदा हो गया था। फिर भी बाइडन ने मुंह नहीं खोला। वही असंवेदनशील बाइडन अब भारत के रवैये को असमंजस स्थिति में बता रहे हैं।
क्वॉड में अमेरिका और भारत की स्थिति
बाइडन प्रशासन के एक टॉप अधिकारी ने कहा कि भारत क्वॉड में अमेरिका का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। दरअसल, चार देशों ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को काउंटर करने के लिए क्वॉड का गठन किया है। इसमें भारत की भूमिका अहम है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दोनों देश का साझा दृष्टिकोण है।
सच्चाई ये है कि ऐतिहासिक रक्षा संबंधों के चलते रूस पर भारत का रुख अमेरिका से उसके संबंधों की राह में आड़े नहीं आता है। क्योंकि दोनों के बीच संबंध काफी मजबूत हैं। यह एक द्विपक्षीय संबंध है, जो पिछले 25 वर्षों में कई मायनों में गहरा हुआ है। यह द्विपक्षीय आधार पर ही संभव हो पाया है।