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Exclusive: रामजन्मभूमि-बाबरी मामले में पक्षकारों के बीच मसौदा तय, खुलासा जल्द

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क्या है रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद                                                                                                                                रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद आजादी के पहले ही अस्तित्व में आया था लेकिन इस दौर में इस विवाद ने उनता तूल नहीं पकड़ा था जितना आजादी के बाद सबसे पहले रामजन्मभूमि विवाद 1949 में सामने आया जब वर्तमान पक्षकार के धर्मदास के गुरू महंत अभिरामदास ने रामजन्मभूमि परिसर के भीतर मूर्ति पधराई । इसके बाद मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब के मरहूम पिता हाजी फेंकू समेत 7 लोगों और महंत अभिराम दास समेत अन्य के बीच एक एफआईआर दर्ज हुई थी।

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इसके बाद से इन्ही के बीच मुकदमा शुरू हुआ। इसके बाद इन पक्षकारों के बीच ही सुन्नी बोर्ड और विहिप आदि अन्य पक्षकार आते रहे। लेकिन मुख्यपक्षकार के तौर पर केवल धर्मदास और हाजी महबूब ही हैं। इसके अलावा निर्मोही अखाड़ा भी इस पूरे प्रकरण में भूमि के स्वामित्व के नाते एकपक्षकार है। लेकिन विवाद को अगर देखा जाये तो हाजी महबूब और धर्मदास को ही माना जा सकता है। इन दोनों के बीच शुरू हुआ विवाद 1986 में फैजाबाद कोर्ट पर जा पहुंचा 1949 के बाद से रामजन्मभूमि परिसर में ताला लगा हुआ था। जिसे 1986 में जिला न्यायधीश ने हिंदुओं की अपील को स्वीकार करते हुए पूजापाठ के लिए खोलने का आदेश दे दिया। इसके बाद इस विवाद के लिए मुस्लिम पक्ष की तरफ से बाबरी एक्शन कमेटी का गठन किया गया था।इस पूरे विवाद में अभी को जमीन स्तर पर ही लड़ाई हो रही थी।

विवाद का राजनीतिकरण
लेकिन आस्था के इस प्रश्न को लेकर कांग्रेस ने जनाधार के साथ पहले तो रामजन्मभूमि विवाद में हिन्दूपक्ष की तरफ से शिलान्यास आदि का कार्यक्रम कर इस मामले को हवा दी। लेकिन मुस्लिम वोट के नाराज होने के डर से अपने पांव वापस ले लिए। जिसके बाद इस पूरे प्रकरण में विहिप और भाजपा कूद पड़ी फिर राम के नाम का चमत्कार ही था की 2 से 182 फिर 283 तक का भाजपा ने सफर तय किया। राम को लेकर भाजपा की राजनीति गणित बड़ी ही अजीबो गरीब रही है। कभी राम मुद्दा बनते थे।

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तो कभी घोषणा पत्र से बाहर होते थे। गाहे-बगाहे रामजन्मभूमि निमार्ण की बात आती जाती रही। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने रामजन्मभूमि को अपने घोषणा पत्र में एक बार फिर जगह दी। लेकिन 3 साल बीते के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने कभी अयोध्या या रामलला का रूख नहीं किया। फिर भी 2017 विधान सभा चुनाव में भाजपा ने फिर राम को साधा सत्ता आई और इस बार सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के साथ रामलला का रूख किया 20 सालों से सूबे के मुखिया के राम दरबार में आने की बांट जोह रहे रामलला का इंतजार अब खत्म हो गया था। लेकिन ये बड़ा सवाल अभी भी अखर रहा था आखिर कब टेन्ट से मंदिर की तरफ रामलला जायेंगे।

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