नई दिल्ली। गत दिनों बसपा के साथ हाथ मिलने वाले कौमी एकता दल के प्रमुख और यूपी के बाहुबली नेताओं में शुमार मुख्तार अंसारी अब चुनाव प्रचार करने के बजाय अभी जेल में ही रहेंगे। दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी परोल की अपील को निरस्त कर दिया है। बता दें कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को निर्वाचन आयोग ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने 22 बच्ची को इस मसले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्तार अंसारी की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद ने दलीलें पेश की थी । सिब्बल और सलमान खुर्शीद ने मुख्तार अंसारी के पक्ष में पिछले लोकसभा चुनाव में सीबीआई कोर्ट से मिले पैरोल को आधार बनाकर पैरोल की मांग की थी । लेकिन चुनाव आयोग और सीबीआई दोनों ने पैरोल का विरोध किया। चुनाव आयोग का कहना था कि मुख्तार की आपराधिक छवि है। उनके पैरोल पर जाने से चुनाव निष्पक्ष नहीं हो पाएगा।
सीबीआई ने दलील दी कि मुख्तार के पैरोल पर छूटने से उनके खिलाफ चल रहे मुकदमों के गवाह आतंकित होंगे और कानून-व्यवस्था पर असर पड़ेगा। मुख्तार अंसारी पर भाजपा के पूर्व विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप है। वे उत्तरप्रदेश के मऊ सदर से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार हैं।
दरअसल मुख्तार अपने चुनाव प्रचार के लिए जनता के बीच जाना चाहते थे। उन्हें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने अपनी पार्टी में शामिल किया था। मुख्तार के साथ ही उनके भाई सिगबतुल्लाह और बेटे अब्बास भी बसपा में शामिल हो गए थे, बदले में इस परिवार को चुनाव के तीन टिकट मिले। इसके तहत मऊ से मौजूदा विधायक मुख्तार अंसारी को इसी सीट से, मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को घोसी सीट से तथा उनके भाई सिबगतउल्ला अंसारी को मुहम्मदाबाद यूसुफपुर सीट से बसपा का टिकट दिया गया। दरअसल समाजवादी पार्टी (सपा) से विधानसभा चुनाव टिकट की नाउम्मीदी मिलने के बाद माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल (कौएद) का बसपा में विलय कर दिया गया था।
मायावती ने तब कहा था कि मुख्तार की छवि खराब करने की कोशिश की गई है। उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ लोग गलत संगति में गलत रास्ते पर निकल जाते हैं और बिगड़ जाते हैं और हमारी पार्टी उनको सुधरने का मौका जरूर देती है। मायावती ने अंसारी परिवार का बचाव करते हुए कहा था कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने छवि खराब करने के लिए इस खानदान के लोगों को फर्जी मुकदमों में फंसाया है। अंसारी बंधु पूर्व में भी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन सपा के दबाव में उन्होंने यह पार्टी छोड़ दी थी।