लखनऊ, (भारत खबर स्पेशल)। साल 1990 का समय। पूरे देश में मंडल कमीशन पर बवाल मचा हुआ था। देश के 70-75 जगहों पर कर्फ्यू के हालात थे। इस बीच भाजपा ने देश में चल रही वीपी सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद राजनीतिक संकट भी खड़ा हो गया। हालांकि वीपी सिंह की सरकार जाने के पीछे कई तर्क और कहानियां गढ़े जाते हैं।
इस बीच अचानक 64 सांसदों के समर्थन वाले युवा तुर्क के नाम से प्रसिद्ध चंद्रशेखर सिंह सरकार बनाने का ऐलान कर देते हैं। उनको समर्थन देने की घोषणा राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस करती है। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम पर अपना पक्ष रखते हुए चंद्रशेखर सिंह अपनी किताब ‘जिंदगी का कारवां’ में लिखते हैं कि एक दिन अचानक आर के धवन ने मुझे सूचना दी कि राजीव गांधी आपसे मिलना चाहते हैं। जब मैं आर के धवन के यहां पहुंचा तो वहां पर राजीव गांधी पहले से ही मौजूद थे।
चंद्रशेखर अपनी आत्मकथा में आगे लिखते हैं कि जब मेरी राजीव गांधी से बातचीत होनी शुरू हुई तो उन्होंने कहा कि क्या आप प्रधानमंत्री बनेंगे? उनके इस सवाल पर मैंने कहा कि मेरे पास तो पर्याप्त संख्या भी नहीं है। इस कारण पीएम बनने का कोई आधार मेरे पास नहीं है। राजीव ने कहा कि आपको इसकी चिंता नहीं करनी है। आप सरकार बनाइए हम बाहर से समर्थन देंगे। इसके बाद चंद्रशेखर सिंह ने 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री का पद संभाल लिया।
इंदिरा के धुर विरोधी रहे चंद्रशेखर आखिरकार कांग्रेस को खटकने लगे। कांग्रेस पर लगातार आरोप लगते रहे कि वह चंद्रशेखर के काम में हस्तक्षेप कर रही है। साथ ही यह भी सुगबुगाहट होने लगी कि राजीव गांधी अब चंद्रशेखर सिंह की सरकार से कभी भी समर्थन वापस ले सकते हैं, इन तमाम कयासों के बीच आखिरकार चंद्रशेखर सिंह ने 21 जून 1991 को इस्तीफा दे दिया।
जब वित्त सचिव को हटा दिया
चंद्रशेखर सिंह अपने गरम मिजाज के लिए जाने जाते थे। प्रधानमंत्री बनने के तीसरे दिन उन्होंने अधिकारियों की एक बैठक बुलाई। इस बैठक में वित्त सचिव विमल जालान ने उन्हें एक नोट दिया। जिसमें देश के हालातों के बारे में लिखा था। जालान ने अपने इस नोट में देश के आर्थिक हालातों को बताते हुए लिखा था कि ‘हमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर निर्भर रहना होगा’।
चंद्रशेखर सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि मैंने विमल जालान से कहा कि ‘जो आपने अपने नोट में जिक्र किया है कि हमें अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर निर्भर रहना होगा, क्या इसके बाद आपको लगता है कि आप सचिव की कुर्सी पर बने रहें। ये हालात क्यों हैं। ये स्थिति जो बनी है, वो एक दिन में तो आई नहीं होगी। मैं ये जानना चाहता हूं कि इससे निपटने के लिए आपने क्या क्या कदम उठाए? ये हालात एक दिन में तो नहीं आए।’
चंद्रशेखर ने लिखा है कि इस सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली। अगले दिन मैंने उन्हें वित्त सचिव पद से हटा दिया। चंद्रशेखर कहते हैं कि ‘जब आपके पास पावर है तो आप इसमें असमर्थता व्यक्त क्यों करते हैं। अगर इस पोजिशन पर होने के बाद भी आप लाचार हैं तो आपको इस्तीफा दे देना चाहिए।’
आज की परिस्थितियों में चंद्रशेखर की प्रासंगिकता
उत्तर प्रदेश में कोरोना लगातार जानलेवा बना हुआ है। प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। आलम यह है कि बड़ी संख्या में लोगों की जाने जा रहीं हैं। ये हालात तब हैं जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार अपनी टीम-11 के साथ मीटिंग कर रहे थे।
हालातों से जूझ रही जनता जब जिम्मेदारों से मदद मांग रही है तो बड़े-बड़े वादे करने वाले जिम्मेदार अब अपनी असमर्थता जता रहे हैं। मंत्री, विधायक, सांसद चिट्ठियां लिख रहे हैं कि अधिकारी उनकी नहीं सुनते। वहीं अधिकारी व्यवस्था न होने का रोना रहे हैं।
आज कई मंत्री-अधिकारी हो जाते पैदल
पूर्वांचल के वरिष्ठ समाजवादी विचारक मानसिंह कहते हैं कि चंद्रशेखर सिंह की कार्यशैली सबसे जुदा है। यही कारण है कि उनके आगे बड़े-बड़े अधिकारी और नेता टिकते नहीं थे। वह कहते हैं कि आज जो नेता चिट्ठी लिखकर जनता के सामने हीरो बनने की कोशिश कर रहे हैं, उनसे पूछा जाए कि इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। आखिर उन्हें इतनी बड़ी सत्ता दी गई है लाचारी दिखाने के लिए या काम करने के लिए। कोरोना को हम पहले भी झेल चुके हैं। इसकी आहट को पहचानने और उस पर एक्शन लेने में इतनी देर क्यों हुई। इसका जिम्मेदार कौन है? सीएम योगी लगातार बैठके कर रहे थे, आखिर वो टीम-11 से क्यों नहीं पूछते कि जो रिपोर्ट बता रहे थे, उसके बाद हालात क्यों इतने बिगड़े।
मानसिंह कहते हैं कि अगर आज की तारीख में चंद्रशेखर सिंह जैसा कोई शासक होता तो सबसे पहले उन मंत्रियों, अधिकारियों और विधायकों-सांसदों पर कार्रवाई करता जो व्यवस्था न होने का रोना रो रहे हैं। सरकार में होते हुए वो अब तक क्या कर रहे थे। इसका जवाब उन्हें देना चाहिए। ना कि एकदूसरे पर आरोप मढ़ने चाहिए।
चंद्रशेखर के बारे में
चंद्रशेखर सिंह का जन्म यूपी के बलिया जिले इब्राहिमपट्टी नामक गांव में 17 अप्रैल 1927 को हुआ था। युवा तुर्क, फायरब्रांड जैसी कई विभूतियों से उन्हें जाना जाता है। चंद्रशेखर देश के नौंवे प्रधानमंत्री थे। चंद्रशेखर राज्यसभा और लोकसभा के कई बार सदस्य रहे। वह समाजवादी आंदोलन से निकले देश के पहले प्रधानमंत्री तो थे ही साथ ही पीएम बनने के लिए न तो वह कभी मंत्री रहे ना मुख्यमंत्री। उन्होंने सीधे पीएम पद की शपथ ली। प्लाज्मा कोष कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आकर उन्होंने 8 जुलाई 2007 को दिल्ली में अंतिम सांस ली।