नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत ने गुरुवार को तमिलनाडु के पवित्र पोंगल त्योहार जलिकट्टू पर शनिवार से पहले सुनवाई करने वाली याचिका को ठुकरा दिया है। कोर्ट ने कहा याचिका का ड्राफ्ट तो तैयार है लेकिन समय से पहले इसे सुनाया जाना संभव नहीं है।अर्जी को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेबर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा किसी बेंच को फैसला सुनाने के लिए कहना अनुचित है।
हालांकि तमिलनाडु राज्य सरकार ने अपनी दलीले दी लेकिन कोर्ट ने उन सभी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। कुछ पार्टियों ने कोर्ट इस आदेश को निराशाजनक बताया है। डीएमके पार्टी के नेता मनु सुंदरम ने कहा, अभी भी एक रास्ता है जो जलीकट्टू को होने दे सकता है जब केंद्र सरकार मामले में अध्यादेश ला सकती है अगर वह चाहे तो।
जानिए क्या है जलीकट्टटू परंपरा पर प्रतिबंध लगाने की वजह:-
-साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों के साथ खराब व्यवहार के आधार पर इस पर प्रतिबंध लगाया था।
-तमिलनाडु सरकार ने इस फैसले का जमकर विरोध किया था।
-हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 2014 के आदेश पर पुनर्विचार करने की याचिका को खारिज कर दिया था।
-इससे पहले भी कोर्ट ने कहा था कि 2009 संवैधानिक रुप से सही नहीं है।
-पिछले वर्ष जनवरी को केंद्र सरकार ने भी एक नोटिस जारी करते हुए कुछ प्रतिबंधों के साथ इस खेल पर से बैन हटाने की मांग की थी।
-जिसके बाद पेटा और कुछ एनजीओ ने इस फैसले के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी।
क्यों है जलीकट्टू इतना खास?
-जलीकट्टू तमिलनाडु का परंपरागत खेल है।
-पोंगल के खास मौके पर बैलों की दौड़ कराई जाती है और लोग उसे अपने काबू में करने की कोशिश करते है।
-इस त्योहार पर मुख्य रुप से बैल की पूजा की जाती है क्योंकि बैल के जरिए किसान अपनी जमीन जोतता है। इसी के जरिए बैल दौड़ का आयोजन किया जाता है।
-इस प्रथा को परंपरा के तौर पर निभाते है।
हालांकि इस परंपरा को लेकर राज्य सरकार सहित तमिल फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों ने भी अपना समर्थन दिया है। तमिल और बॉलीवुड में अपनी धाक जमा चुके एक्टर कमल हसन ने जलीकट्टू पर अपना समर्थन देते हुए ट्टीट किया, जो लोग बुल फाइट को नफरत से देखते है उन्हें बिरयानी भी छोड़ देनी चाहिए। अगर इसे बैन कर रहे हैं तो बिरयानी को भी बैन करना चाहिए। मैं उन कुछ एक्टर्स में से एक हूं जो खुद ये खेल खेलते हैं। तमिलियन होने पर मुझे गर्व है और ये मेरा कल्चर है।