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एक जुनून ऐसा भी जमीं पर रच दिया हरियाली का इतिहास

baba एक जुनून ऐसा भी जमीं पर रच दिया हरियाली का इतिहास

लखनऊ । पर्यावरण संरक्षण के मिसाल बने पेड़ वाले बाबा भले ही गुमनाम जिंदगी जी रहे है । लोगों इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस उम्र में संसाधानों के अभाव के वाबजूद साइकिल से चलकर पेड़ लगाने का सिलसिला शुरु किया था। वो आज भी बदस्तूर जारी है। अब तक पेड़ वाले बाबा ने लखनऊ से लेकर पूर्वांचल तक डेढ़ लाख से भी ज्यादा पेड़ लगाए है। हालांकि, हमने कोरोना काल में चिपको आंदोलन के मसीहा रहे सुंदरलाल बहुगुणा को खोया है। ऐसे में पेड वाले बाबा लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हैं। इनका भी यही कहना है कि, लोग अपने जीवन में कम से कम से एक पेड जरुर लगाए और वृक्षों को गोद लें। जिससे हमारी धरा हरियाली से बनीं रहे।

दरअसल, बिहार राज्य के जिला गोपालगंज गांव चकिया निवासी मनीष तिवारी को उर्फ पेड़ वाले बाबा तीस बरस से राजधानी लखनऊ व उसके आस-पास खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं। आज भी उनका परिवार गोपालगंज में रहता हैं। उनके करीबी दोस्त राहुल सिंह बताते हैं कि, मनीष तिवारी की उम्र लगभग 60 बसर की है। उन्होने अपने जीवनकाल में बैगर सरकारी इमदाद और संसाधनों के अभाव में लखनऊ समेत मऊ, बलिया-बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, देवरिया, मिर्जापुर अन्य जिलों में डेढ़ लाख से ज्यादा छायादार वृक्ष लगाकर  जमीं पर हरियाली का इतिहास रच दिया है। बताया कि उनके जुनून को देख लोग उन्होने पेड़ वाले बाबा के नाम से जानते हैं। वह दिन-रात साइकिल में फावड़ा और खाद्य  की बोरी बांधे पेड़-पौधों की सेवा में जुटे रहते हैं।

स्टूडेंट्स के हक की लड़ाई लड़ी

पेड़ वाले बाबा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की है। बताया कि साल 1990 में मनीष तिवारी ने छात्र संघ का चुनाव लड़ा, दुर्भाग्यवश मनीष चुनाव जीत न सके । फिर भी वह संघर्ष करते रहे, और  गरीब तबके के स्टूडेंट्स के हक की लड़ाई लड़ते रहे। साल 1999 में मनीष तिवारी लखनऊ आ गए, फिर वन-विभाग के डायरेक्टर बोर्ड के सदस्य चुने गए। इसी बीच आजीवन कुंवारे रहने का फैसला लेकर, पूरा जीवन पेड़-पौधों के प्रति समर्पित कर दिया । इनके इस फैसले से घर वालों ने मनीष से रुख मोड़ लिया। इसके बाद मनीष ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और पेड़-पौधों की सेवा में जुट गए।

देहदान करने की है ख्वाहिश

राहुल बताते हैं कि, मनीष की दुनिया पेड़-पौधे पर आधारित है। यदि कोई उन्हें सूचना देता है, कि हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं तो मनीष अपनी साइकिल से वहां पहुंच जाते हैं। और पेड़ काटने वाले शख्स पर कानून की मदद से कार्रवाई भी करते हैं। बताया कि मरणोंपरांत मनीष की ख्वाहिश है कि वह अपने शरीर को दान करना चाहते हैं। जैसे जीतेजी पर्यावरण संरक्षण कर लोगों को जीवन सुगम बना रहे हैं। वहीं मरने के बाद अंगदान कर जीवित लोगों के काम आना चाहते हैं

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