प्रयागराज: संगम नगरी एक ऐसा तीर्थ स्थल है, जिसने अपने अंदर सभी धर्मों को संजोए रखा है। इसका जीता जागता उदाहरण प्रयागराज के अंदावा स्थित जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का प्राचीन मंदिर है। जहां सुबह-शाम पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
प्रयागराज जंक्शन से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित प्रयागराज बनारस को जोड़ने वाली नेशनल हाइवे के ठीक बगल में प्रकृति के खुले वातावरण में मंदिर बना है। ये जैन मंदिर देखने में अत्यंत सुंदर और आने जाने वाले लोगों को अपने तरफ आकर्षित करने का केंद्र बना हुआ है।
मंदिर की खास बात
इस मंदिर की सबसे बड़ी खूबी है कि इसे कृत्रिम तरीके से कैलाश पर्वत की तरह बनाया गया है। इस विशाल पर्वत पर कुल छोटी-बड़ी मिलाकर 72 मंदिरों का निर्माण कराया गया है।
जो 24×3 के आधार पर बनाया गया है, जो 24 जैन तीर्थकरों के विषय में बताता है। इस पर्वत के सबसे ऊंची चोटी पर भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है।
कृत्रिम रूप से तैयार कैलाश पर्वत के ठीक नीचे गोलाकार में गुफा का निर्माण किया गया है, जिसमें जैन धर्म के सभी तीर्थंकरों के साथ-साथ भगवान ऋषभदेव की सुनहरी प्रतिमा को शीशे में स्थापित किया गया है।
स्तंभ का निर्माण
पर्वत के बगल में 21 फीट के स्तंभ का निर्माण कराया गया है, जिस पर भगवान ऋषभदेव के पूरे जीवन का वृतांत लिखा गया है।
कहा जाता है कि भगवान ऋषभदेव प्रयागराज में पहली बार इसी स्तंभ के नीचे बैठकर लोगों को जैन धर्म का ज्ञान देते हुए विश्राम किए थे। भगवान ऋषभदेव के इस मंदिर को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर की जैन और हिंदू धर्मावलंबियों में बहुत मान्यता है।
क्या है मान्यता
पौराणिक कथाओं की मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि भगवान ऋषभदेव विष्णु जी के आठवें अवतार थे और इन के 100 पुत्र थे। इनके 100 पुत्रों में भरत और बाहुबली सबसे ज्यादा चर्चित थे।