पूरी दुनिया को कोरोना में उलझाकर पड़ोसी मुल्कों पर अपने दबदबा बनाने की कोशिश कर रहे चीन की दुनियाभर में आलोचना हो रही है। लेकिन चीन न तो मानने को तैयार है और न ही पीछे हटने को तैयार है। लेकिन इस बीच चीन ने लद्दाख सीमा पर भारत से धोखा करने के बाद जो जापान से पंगा लिया है। वो चीन को भारी पड़ सकता है। और अगर ऐसा हो जाता है तो दुनिया तीसरा विश्व युद्ध देख सकती है।
खबरों की माने तो चीन अब पूर्वी चीन सागर में भी जापान के साथ द्वीपों को लेकर उलझ सकता है। अगर जापान से चीन ने बैर मोल लेने की कोशिश की तो इसमें अमेरिका जरूर शामिल होगा।आपको बता दें, चीन और जापान दोनों ही इन निर्जन द्वीपों पर अपना दावा करते हैं। जिन्हें जापान में सेनकाकु और चीन में डियाओस के नाम से जाना जाता है। इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के हाथों में है।
वहीं, चीन का दावा है कि ये द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जापान को अपना दावा छोड़ देना चाहिए। इतना ही नहीं चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी तो इस पर कब्जे के लिए सैन्य कार्रवाई तक की धमकी दे चुकी है।सेनकाकू या डियाओस द्वीपों की रखवाली वर्तमान समय में जापानी नौसेना करती है। ऐसी स्थिति में अगर चीन इन द्वीपों पर कब्जा करने की कोशिश करता है तो उसे जापान से युद्ध लड़ना होगा।
हालांकि दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत वाले चीन के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा। पिछले हफ्ते भी चीनी सरकार के कई जहाज इस द्वीप के नजदीक पहुंच गए थे जिसके बाद टकराव की आशंका भी बढ़ गई थी।
इसके साथ ही एक खबर ये भी सामने आ रही है कि, अगर चीन जापान से टकरता है तो उसे अमेरिका से भी टकराना पड़ेगा जिससे निबटना चीन को भारी पड़ेगा।
अब आप सोच रहे होंगे कि, चीन और जापान के विवाद में आखिर अमेरिका का क्या काम तो इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है दोनों देशों के बीच की संधि।
चलिए आपको बताते हैं क्या है ये संधि?
जापान और अमेरिका में 19951 में सेन फ्रांसिस्को संधि है जिसके तहत जापान की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की है। इस संधि में यह भी बात लिखी है कि जापान पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा। इस कारण अगर चीन कभी भी जापान पर हमला करता है तो अमेरिका को इनके बीच आना पड़ेगा। यह सर्व विदित है कि अगर जापान के साथ अमेरिका ने मिलकर चीन पर हमला कर दिया तो तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो सकता है।
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तो देखा आपने चीन जापान से उलझकर कितनी बड़ी गलती करेगा। क्योंकि चीन की एक हरकत से पूरे एशिया में तीसरा विश्व युद्ध छिड़ सकता है। जो कि चीन कभी नहीं चाहेगा। क्योंकि इस तबाही में सबसे बड़ी कीमत चीन को ही चुकानी पड़ेगी।