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ढहाये गये विवादित ढांचे पर बनेगा राम लला का मंदिर, देखें कैसा होगा प्रारूप?

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दिल्ली। अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि जिस स्थान पर विवादित ढांचा ढहाया गया था, उसी स्थान पर राम मंदिर बनेगा। मुस्लिम पक्ष को किसी अन्य स्थान पर पांच एकड़ जमीन मिलेगी, जहां मस्जिद बनाई जा सकती है। राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया गया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने आज  सुबह 11 बजे सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि फैसले में कई विरोधाभास हैं, इसलिए वह फैसले से संतुष्ट नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक मुस्लिम पक्ष उक्त जमीन पर अपना अधिकार साबित नहीं कर पाया है, इसलिए विवादित जमीन पर राम जन्मभूमि न्यास का अधिकार है। इस तरह अदालत ने अब तक के सबसे बड़े विवाद का फैसला कर दिया है। अयोध्या की इस जमीन पर सन 1528-29 के दौरान बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मस्जिद बनवाई थी।

1853 में हिंदुओं और मुसलमानों में इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ था। तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने विवाद हल करने की प्रक्रिया में मुसलमानों को भीतर का हिस्सा और हिंदुओं को बाहर का हिस्सा दे दिया था। करीब 90 साल तक यह स्थिति बनी हुई थी। मस्जिद के भीतरी हिस्से की देखभाल के लिए मुस्लिम पक्ष का चौकीदार नियुक्त था। बाहर चबूतरे पर हिंदू-साधु संत पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करते थे।

एक बार अयोध्या में मौसम ठीक नहीं था और मुस्लिम चौकीदार किसी काम से बाहर गया था। तब आंधी-तूफान से बचने के लिए एक साधु ने राम लला की प्रतिमा चबूतरे से उठाकर भीतरी हिस्से में रख दी थी। जब मुस्लिम चौकीदार लौटा तो दूर से देखकर ही लौट गया। मस्जिद के भीतर रामलला की प्रतिमा रखे जाने से मुसलमान नाराज हुए। तनाव बढ़ा तो तत्कालीन नेहरू सरकार ने द्वार पर ताला लगा दिया। उसके बाद से विवाद चल रहा था।

1986 में फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दे दिया। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। 1989 विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के लिए अभियान शुरू किया। छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिरा दिया गया। इसके बाद पूरे देश में दंगे भड़के। करीब दो हजार लोगों की जान गई। अयोध्या का विवादित ढांचा ढहाए जाने की घटना भारतीय राजनीति का ऐतिहासिक मोड़ थी। उस समय देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव थे।

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