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चुनावों की लिस्ट से गायब रही बेरोजगारी, जनता में बस हिन्दू-मुस्लिम की दावेदारी

loksabha election2019 चुनावों की लिस्ट से गायब रही बेरोजगारी, जनता में बस हिन्दू-मुस्लिम की दावेदारी

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के रिजल्ट लगभग करीब-करीब स्पष्ट हो गया है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने 349 सीटों पर जीत दर्ज करने के करीब है। 2019 में बीजेपी ने राष्ट्रवाद, आतंकवाद और नरेंद्र मोदी की छवि पर चुनाव लड़ा। दूसरी तरफ कांग्रेस ने सबसे अधिक उसे बेरोजगारी के मुद्दे पर घेरा लेकिन जनता ने कांग्रेस के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया और मोदी पर भरोसा जताते हुए उन्हें दोबारा पीएम बनने का जनादेश दिया।
भारत के पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो बेरोजगारी का मुद्दा कभी नरम तो कभी गरम रहा। RBI-KLEMS के रोजगार डाटा के मुताबिक साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जब सत्ता से बाहर हुई थी तो उस वक्त रोजगार सालाना 2.3 फीसदी की दर से बढ़ रहा था। यदि इसे नंबर में बदलें तो हर साल 94 लाख नए रोजगार सृजित हो रहे थे।
साल 2014 में कांग्रेस को केवल 44 सीटें मिली थीं। हालांकि, यूपीए के दूसरे कार्यकाल में रोजगार के मामले में मनमोहन सिंह सरकार का रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा था। अपने दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने सालाना 46 लाख नए रोजगार दिए थे। साल 2013-14 के बीच 2.3 करोड़ नए रोजगार सृजित हुए थे। ये 1980 के बाद सबसे अधिक था।
बेरोजगारी के बावजूद लौटे मनमोहन सिंह
साल 2004 के बाद 2009 में मनमोहन सिंह सरकार ने ज्यादा सीटों के साथ वापसी की थी। मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के मुकाबले पहले कार्यकाल में रोजगार की दर काफी कम थी। आंकड़ों के मुताबिक 2004 से 2009 के बीच मनमोहन सिंह ने महज 38 लाख नए रोजगार सृजित किए थे। फिर भी उनकी सरकार सत्ता में दोबारा वापसी नहीं कर पाई।

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