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अक्षय त्रितीया: बांके बिहारी जी के दर्शन से मिलेगा लाभ, जानें विशेष संयोग

shri banke bihary ji अक्षय त्रितीया: बांके बिहारी जी के दर्शन से मिलेगा लाभ, जानें विशेष संयोग
  • धर्म डेस्क, नाएडा।

भगवान कृष्ण के विभिन्न स्वरूपों में से श्री बांके बिहारीजी का वृंदावन स्थित मंदिर दुनिया भर में अपनी भव्यता और भगवान के चमत्कारों के लिए विख्यात है। तिरुपति बालाजी और मां वैष्णोदेवी के मंदिर के साथ यह मंदिर भी देश के प्रमुख अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है। वैसे तो यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है, परंतु अक्षय तृतीया के अवसर पर यहां भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ रहती है। वजह खुद बांके बिहारीजी हैं।

बांके बिहारी जी के दुर्लभ दर्शनबांके बिहारी मंदिर में अक्षय तृतीया एक ऐसा अवसर है जब बांके बिहारीजी के चरणों के दर्शन होते हैं। पूरे साल बिहारीजी के चरण वस्त्रों और फूलों से ढके रहते हैं। मगर अक्षय तृतीया पर साल में एक बार प्रभु के चरणों के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि इस दिन प्रभु के चरणों के दर्शन करने से भक्तों को विशेष कृपा मिलती है।

सर्वांग चंदन लेपन अक्षय तृतीया के दिन भगवान के पूरे शरीर पर चंदन का लेप किया जाता है। इसके लिए दक्षिण भारत से चंदन मंगाया जाता है और उसे महीनों पहले घिसना शुरू कर दिया जाता है। अक्षय तृतीया से एक दिन पहले तक चंदन को घिसने का कार्यक्रम चलता है और फिर उस दिन उसे और महीन किया जाता है। फिर इसमें कपूर, केसर, गुलाबजल, गंगाजल, यमुनाजल और विभिन्न प्रकार के इत्रों को मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन श्रृंगार से पहले भगवान के पूरे शरीर पर इसका उबटन लगाया जाता है।

बांके बिहारीजी साक्षात राधा और कृष्ण का सम्मिलित रूप हैं। मान्यता है कि स्वामी हरिदासजी ने इन्हें अपनी भक्ति और साधना की शक्ति से प्रकट किया था। बांके बिहारीजी के श्रृंगार में आधी मूर्ति पर महिला और आधी मूर्ति पर पुरुष का स्वरूप दिया जाता है।

एक बार वृंदावन में एक संत अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारीजी के चरणों का दर्शन करते हुए श्रद्धा भाव से गुनगुना रहे थे- श्री बांके बिहारीजी के चरण कमल में नयन हमारे अटके। एक व्यक्ति वहीं पर खड़ा होकर यह गीत सुन रहा था। उसे प्रभु की भक्ति का यह भाव बहुत पसंद आया। दर्शन करके वह भी गुनगुनाते हुए अपने घर की ओर बढ़ गया। भक्ति भाव में लीन इस व्यक्ति की गाते-गाते कब जुबान पलट गई, वह जान ही नहीं पाया और वह उल्टा गाने लगा- बांके बिहारी जी के नयन कमल में चरण हमारे अटके।

उसके भक्तिभाव से प्रसन्न होकर बांके बिहारी प्रकट हो गए। प्रभु ने मुस्कुराते हुए उससे कहा, अरे भाई मेरे एक से बढ़कर एक भक्त हैं, परंतु तुझ जैसा निराला भक्त मुझे कभी नहीं मिला। लोगों के नयन तो हमारे चरणों में अटक जाते हैं परंतु तुमने तो हमारे नयन कमल में अपने चरणों को अटका दिया। प्रभु की बातों को वह समझ नहीं पा रहा था, क्योंकि वह प्रभु के निस्वार्थ प्रेम भक्ति में डूबा था।

मगर फिर उसे समझ आया कि प्रभु तो केवल भाव के भूखे हैं। उसे लगा कि अगर उससे कोई गलती हुई होती तो भगवान उसे दर्शन देने न आते। प्रभु के अदृश्य होने के बाद वह खूब रोया और प्रभु के दर्शन पाकर अपने जीवन को सफल समझने लगा। मान्यता है कि तब से अक्षत तृतीया के दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन की परंपरा शुरू हुई।”

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